08 July 2013

॥ महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रं ॥



अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनी विश्वविनोदिनी नन्दनुते
गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिश्नुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुंबिनि भूरि कुटुंबिनि भूरि कृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१॥

सुरवरवर्षिणि दुर्धरदर्शिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्विषमोषिणि घोषरते।
दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२॥

अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुण्ड गजाधिपते
रिपु गज गण्ड विदारण चण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते।
निज भुज दण्ड निपाथित चण्ड विपाथित मुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥३॥

धनुरनु संग रणक्षणसंग परिस्फुर दंग नटत्कटके
कनकपिशंग पृषत्कनिषंग रसद्‌भटशृंग हताबटुके।
कृत चतुरङ्ग बलक्षिति रङ्ग घटद्‌बहुरङ्ग रटद्‌बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥४॥

जय जय जप्य जयेजय शब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुते
झन्झण झिञ्झिमि झिंकृत नूपुर सिंजित मोहित भूतपते।
नटित नटार्धनटीनटनायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥५॥

अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कांतियुते
श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रवृते।
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥६॥

सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्लिक मल्लरते
सिरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक चिल्लिक भिल्लिक वर्गवृते।
सितकृत फुल्लिसमुल्लसितारुण तल्लजपल्लवसललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥७॥

कमलदलामल कोमलकांति कला ललितामल भाललते
सकल विलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले।
अलिकुल सङ्कुल कुंवलय मण्डल मौलिमिलद्‌बकुलाधि कुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥८॥

अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय शृंग निजालय मध्यगते।
मधु मधुरे मधु कैटभ गंजिनि कैटभ भंजिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥ ९॥

कर मुरलीरववीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुरते
मिलित मिलिन्द मनोहर गुञ्जित रंजितशैलनिकुञ्जगते।
निजगण भूत महाशबरीगण रंगण संमृत केलिरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१०॥

अयि मयी दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननीति यथाऽसि तथाऽसि ममाममतासिरमे ।
यदुचितमत्र भवत्युररि कुरुतादुरुतापमपातुरमे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥११॥

॥ॐ साम्बसदाशिवाय नमः॥

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