08 July 2013

॥ श्री सुवर्णमालास्तुतिः ॥


॥ॐ ह्रीं गं ह्रीं महागणेशाय नमः स्वाहा॥

ईश गिरीश नरेश परेश महेश बिलेशय भूषण भो।
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगं॥

उमया दिव्य सुमङ्गल विग्रह यालिङ्गित वामाङ्ग विभो।
ऊरी कुरु मामज्ञमनाथं दूरी कुरु मे दुरितं भो।
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगं॥१॥


ऋषिवर मानस हंस चराचर जनन स्थिति लय कारण भो।
अन्तःकरण विशुद्धिं भक्तिं च त्वयि सतिं प्रदेहि विभो।
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगं॥२॥


करुणावरुणालयमयिदास उदासस्तवोचितो न हि भो।
जय कैलाश निवास प्रमथ गणाधीश भू सुरार्चित भो।
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगं॥३॥

झनुतक झङ्किणु झनुतत्किटतट शब्दैर्नटसि महानट भो।
धर्मस्थापन दक्ष त्रयक्ष गुरो दक्ष यज्ञ शिक्षक भो।
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगं॥४॥


बलमारोग्यं चायुस्त्वद्गुण रुचितां चिरं प्रदेहि विभो।
भगवन् भर्ग भयापह भूतपते भूतिभूषिताङ्ग विभो।
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगं॥५॥

शर्व देव सर्वोत्तम सर्वद दुर्वृत्तगर्वहरण विभो।
षड् रिपु षडूर्मि षड्विकार हर सन्मुख षन्मुख जनक विभो।
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगं॥६॥


सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्मे त्येतत्लक्षण लक्षित भो।
हाऽहाऽहूऽहू मुख सुरगायक गीता पदान पद्य विभो।
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगं॥७॥

॥ इति श्री शङ्कराचार्य कृत सुवर्णमालास्तुतिः॥


No comments: