01 July 2013

!!! रावण कृत शिव ताण्डव स्तोत्र !!!




जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थलॆ
गलॆवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनॊतु नः शिवः शिवम् ॥ 1 ॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
-विलॊलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावकॆ
किशॊरचन्द्रशॆखरॆ रतिः प्रतिक्षणं मम ॥ 2 ॥

धराधरॆन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमॊदमानमानसॆ ।
कृपाकटाक्षधॊरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरॆ मनॊ विनॊदमॆतु वस्तुनि ॥ 3 ॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखॆ ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमॆदुरॆ
मनॊ विनॊदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ 4 ॥

सहस्रलॊचनप्रभृत्यशॆषलॆखशॆखर
प्रसूनधूलिधॊरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकॊरबन्धुशॆखरः ॥ 5 ॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
-निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलॆखया विराजमानशॆखरं
महाकपालिसम्पदॆशिरॊजटालमस्तु नः ॥ 6 ॥

करालफालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाधरीकृतप्रचण्डपञ्चसायकॆ ।
धराधरॆन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलॊचनॆ मतिर्मम ॥ 7 ॥

नवीनमॆघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबन्धुकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनॊतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः ॥ 8 ॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
-विलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजॆ ॥ 9 ॥

अगर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजॆ ॥ 10 ॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
-द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालफालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥ 11 ॥

दृषद्विचित्रतल्पयॊर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजॊर्-
-गरिष्ठरत्नलॊष्ठयॊः सुहृद्विपक्षपक्षयॊः ।
तृष्णारविन्दचक्षुषॊः प्रजामहीमहॆन्द्रयॊः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजॆ ॥ 12 ॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकॊटरॆ वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलॊललॊचनॊ ललाटफाललग्नकः
शिवॆति मन्त्रमुच्चरन् सदा सुखी भवाम्यहम् ॥ 13 ॥

इमं हि नित्यमॆवमुक्तमुत्तमॊत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरॊ विशुद्धिमॆतिसन्ततम् ।
हरॆ गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमॊहनं हि दॆहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥ 14 ॥

पूजावसानसमयॆ दशवक्त्रगीतं यः
शम्भुपूजनपरं पठति प्रदॊषॆ ।
तस्य स्थिरां रथगजॆन्द्रतुरङ्गयुक्तां

लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥ 15 ॥


॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

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