इसी की पर्त में दबकर कहीं, शोले दहकते हैं
देखकर करनी वतन के रहनुमाओं की
वतन के वक्ष में गहरे कहीं,शीशे उतरते हैं
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इतिहास की परछाइयाँ तिरती हवाओं में
वही फिर दर्द की चीखें ,उभरती हैं फिजाओं में.
नालंदा -तक्षशिला में तुम ,जरा सा झाँक तो आओ
लगी है आग फिर घिरने, अरे वैदिक ऋचाओं में
अब देखना है जिस्म में, कब तक शिवाओं के
है ठन्डे पड़े ज्वालामुखी ,फिर से पिघलते हैं .
देखकर करनी............................
हम देखते हैं ,जब कभी बारूद फटते हैं
नर- नारियों के चीथड़े ,बच्चे उधड़ते हैं
भद्दे ,घिनोने और कुत्सित ,उस समय आकर
कितने नकाबों में ढके चेहरे उभरते हैं
तुम क्या समझोगे ,तब सियासती शतरंज को लखकर
वतन के आशिकों के ,किस तरह ह्रदय दरकते हैं
देखकर करनी............................
जिन किश्तियों के ख्वाब में,आकंठ डूबे हो
सागर उतरने में तुम्हारे काम आएँगी
वे बीच में तुमको समुन्दर में डुबोकर के
खुद के बचाकर सागरों के पार जाएँगी
तुम्हारी बेबसी,लचर सी यह मूढ़ता लखकर
तन से वतन के श्वास में विषधर निकलते हैं
देखकर करनी.................................................
दुश्मनों के जाल से अनजान हो या तुम
खुद जानकर के बैरियों के पाँव पड़ते हो
जिनके शरीरों में तुम्हे है आग थी भरनी
उन्ही के सामने जाकर के तुम एड़ी रगड़ते हो
तुम्हारी कायराना ,बुजदिली की ,दास्ताँ सुनकर
वतन की आँख से अब रक्त के बादल बरसते है
देखकर करनी............................................
पहचानो समय को अन्यथा बरबादियाँ होंगी
तुम्हारे नष्ट ये सारे महल और खेतियाँ होंगी
यूँ बैरियों की खिदमतें जारी रहीं तो फिर
दरिंदों की गुफाओं में वतन की बेटियाँ होंगी
वतन पे मरने वाले हम तुम्हे लो वक्त देते हैं
नहीं फिर देखना ,ज्वालामुखी कैसे दहकते है...
देखकर करनी................................
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