श्री शिव महापुराण के अनुसार भगवान् शिव को प्रदक्षिणा अत्यंत प्रिय है और शिव पूजा भी शिव प्रदक्षिणा के बिना पूरी नहीं होती | शिव की प्रदक्षिणा के लिए शास्त्र का आदेश है की इनकी अर्द्ध-प्रदक्षिणा करनी चाहिए...
[ दुर्गाजी की एक , सूर्य की सात, गणेश की तीन, विष्णु की चार, और शिव की आधी प्रदक्षिणा करनी चाहिए... नारद पुराण ]
शिवलिंग की निर्मली (जल की नाली ) को कभी भूल कर भी नहीं लांघना चाहिए... इससे भारी दोष लगता है और शिव कुपित होते हैं | शिव निर्मली को "सोमसूत्र" भी कहा जाता है जिसे कभी नहीं लांघना चाहिए ...
मुख्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों में निर्मली
(जहां से शिवलिंग पर जल चढ़ कर नीचे बहता है) के जल को वहीँ गड्ढा बना कर एकत्रित कर लेते हैं और वहाँ से निकाल कहीं जमीन में जाने देते हैं | यदि निर्मली ढकी हो और गुप्त रूप से बनी हो तो पूरी परिक्रमा करने पर भी दोष नहीं लगता | ऐसे में हम मंदिर के चारो ओर पूरी परिक्रमा कर सकते हैं | परन्तु जिन मंदिरों में निर्मली के निकास की समुचित व्यवस्था नहीं है, वहाँ उसे कदापि नहीं लांघना चाहिए |
मंदिर में स्थापित शिवलिंग साक्षात महादेव ही हैं... उनकी प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है शिव-लिंग में... अत: ऐसा माना जाता है कि अभिषेक का जल शिव के सहस्त्रार चक्र(मस्तक) से निकलने वाले अमृत से मिलकर अत्यंत पवित्र हो जाता है और देव-चेतना से भर जाता है... वही सोमसूत्र में प्रवाहित होता है | अत: उसे लांघना आराध्य का घोर अपमान करना है |
इसका एक वैज्ञानिक कारण भी है...
सोमसुत्र में शक्ति-स्रोत होता है (देव-चेतना से परिपूरित ) | अत: उसे लांघते समय पैर फैलते हैं और वीर्य-निर्मित और ५ अन्तस्थ वायु के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ता है | इससे देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है | जिससे शरीर और मन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है | अत: शिवलिंग कि अर्द्ध चंद्राकार प्रदक्षिणा ही करने का शास्त्र का आदेश है
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"अर्द्ध सोमसूत्रांतमित्यर्थ: शिव प्रदक्षिणीकुर्वन सोमसूत्र न लंघयेत इति वाचनान्तरात" |
(जहां से शिवलिंग पर जल चढ़ कर नीचे बहता है) के जल को वहीँ गड्ढा बना कर एकत्रित कर लेते हैं और वहाँ से निकाल कहीं जमीन में जाने देते हैं | यदि निर्मली ढकी हो और गुप्त रूप से बनी हो तो पूरी परिक्रमा करने पर भी दोष नहीं लगता | ऐसे में हम मंदिर के चारो ओर पूरी परिक्रमा कर सकते हैं | परन्तु जिन मंदिरों में निर्मली के निकास की समुचित व्यवस्था नहीं है, वहाँ उसे कदापि नहीं लांघना चाहिए |
मंदिर में स्थापित शिवलिंग साक्षात महादेव ही हैं... उनकी प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है शिव-लिंग में... अत: ऐसा माना जाता है कि अभिषेक का जल शिव के सहस्त्रार चक्र(मस्तक) से निकलने वाले अमृत से मिलकर अत्यंत पवित्र हो जाता है और देव-चेतना से भर जाता है... वही सोमसूत्र में प्रवाहित होता है | अत: उसे लांघना आराध्य का घोर अपमान करना है |
इसका एक वैज्ञानिक कारण भी है...
सोमसुत्र में शक्ति-स्रोत होता है (देव-चेतना से परिपूरित ) | अत: उसे लांघते समय पैर फैलते हैं और वीर्य-निर्मित और ५ अन्तस्थ वायु के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ता है | इससे देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है | जिससे शरीर और मन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है | अत: शिवलिंग कि अर्द्ध चंद्राकार प्रदक्षिणा ही करने का शास्त्र का आदेश है
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