पूजन विधि में बिल्व पत्र का विशेष महत्व तथा उससे प्राप्त होने वाले फलों के बारे में भी बताया गया है।शिव महापुराण के विद्येश्वरसंहिता के अनुसार बिल्ववृक्ष महादेव का ही रूप है। तीनों लोकों में जितने पुण्य-तीर्थ प्रसिद्ध हैं, वे संपूर्ण तीर्थ बिल्व के मूलभाग में निवास करते हैं। जो मनुष्य बिल्व के मूल में लिंगस्वरूप अविनाशी महादेवजी का पूजन करता है वह निश्चय ही शिवपद को प्राप्त होता है।
जो गंध, पुष्प आदि से बिल्व के मूल भाग का पूजन करता है है वह शिवलोक को प्राप्त होता है। जो बिल्व की जड़ के समीप दीपक जलाता है वह तत्वज्ञान से सम्पन्न हो जाता है और भगवान महेश्वर में मिल जाता है। जो बिल्ब की जड़ के समीप भगवान शिव के उपासक को भक्तिपूर्वक भोजन कराता है उसे कोटिगुना पुण्य प्राप्त होता है।
जो बिल्व की जड़ के समीप शिवभक्त को खीर और घृत युक्त अन्न दान करता है वह कभी दरिद्र नहीं होता। जो बिल्व की शाखा थामकर हाथ से उसके नए-नए पल्लव उतारता है तथा उनसे उस बिल्व की पूजा करता है वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।
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