दुर्गा ध्यान मंत्र
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: ।
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ॥
दारिद्र्य दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या ।
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता ॥
हे माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याण मयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दु:ख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवि आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सब का उपकार करने के लिये सदा मचलता रहता हो।
सब प्रकार के मंगल प्रदान करने वाला मंत्र
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगल मयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।
बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥
मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
मन पसन्द पत्नी की प्राप्ति के लिये
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥
मन की इच्छा के अनुसार चलने वाली मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारने वाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।
विपत्ति नाश और शुभ की प्राप्ति के लिये
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।
वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मंगल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश करो ।
बाधा शान्ति के लिये
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥
हे सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।
आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
हे देवी मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।
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