@@@ काल गड़ना @@@
श्री वेद व्यास जी द्वारा रचित श्री मदभागवत कथा को केवल
श्री कृष्ण लीला के रूप में प्रचारित किया जाता है । पर इसमें
विज्ञान भी है जिसको या तो समझा नहीं गया है या उसकी
अनदेखी की गई है ।
भागवत में समय गणना के लिए जितनी सूक्ष्म ईकाइयों का
वर्णन है उसे देख कर आज के वैज्ञानिक भी दांतों तले अंगुली
दबाये बिना नहीं रह पाएंगे । उस काल में आज से लगभग तीन
हज़ार वर्ष पहले (आज के इतिहासकारों द्वारा अनुमानित) हमारे
ज्योतिर्विज्ञानियों द्वारा समय को मापने के लिए व्यवहृत प्रणाली
बहुत ही उन्नत थी ।
भागवत के अनुसार समय की सूक्षतम इकाई " परमाणुसमय " है ।
1 परमाणु समय = सूर्यकिरणों को एक परमाणु को पार करने में लगाने वाला समय
2 परमाणु समय = 1 अणु समय
3 अणु समय = 1 त्रसरेणु
3 त्रस रेणु = 1 त्रुटि
100 त्रुटि = 1 वेध
3 वेध = 1 लव
3 लव = 1 निमेष
3 निमेष = 1 क्षण
5 क्षण = 1 काष्ठा
15 काष्ठा = 2 लघु
15 लघु = 1 नाडिका
2 नाडिका = 1 मुहूर्त
30 मुहूर्त = 1 प्रहर
8 प्रहर = 1 दिन(एक सूर्योदय से परवर्ती सूर्योदय तक का समय)
यदि हम वैदिक दिन और ग्रेगेरियन (अंग्रेजी) दिन की तुलना करें तो :-
वैदिक दिन :
1 दिन = 8 प्रहर
= 240 मुहूर्त
= 480 नाडिका
= 7,200 लघु
= 54,000 काष्ठा
= 2,70,000 क्षण
= 8,10,000 निमेष
= 24,30,000 लव
= 72,90,000 वेध
= 72,90,00,000 त्रुटि
= 2,18,70,00,000 त्रसरेणु
= 6,56,10,00,000 अणु समय
= 13,12,20,00,000 परमाणु समय
उसी प्रकार स्थूल काल गणना भी बहुत उन्नत है ।
पाश्चात्य दिन :
1 दिन = 24 घंटे
= 1440 मिनट
= 86400 सेकेंड
इसके बाद माइक्रो ....आदि उपसर्गों का प्रयोग करके काम चलाया जाता है ।
आओ !
हम अपने आप को फिर से जानें !!
अपनी संस्कृति पहचाने !!!
अपने ज्ञान को फिर से जागृत करें !!!!
हम क्या थे ? हम क्या हैं ? हमें क्या होना है ?
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