इसे हम शिवजी को चढाते है ; अर्थात ये ज़हरीला होता है . इसलिए इसे निश्चित मात्रा में वैद्य की देख रेख में लेना चाहिए .पर कुछ आसान प्रयोग आप कर सकते है -
_ अगर किसी को चलती गाडी में उलटी आती हो ( motion sickness ) तो यात्रा पर निकलते समय जो स्वर चल रहा हो अर्थात जिस तरफ की श्वास ज़्यादा चल रही हो उस पैर के नीचे आक के पत्ते रखे . यात्रा के दौरान कोई तकलीफ नहीं होगी .
_ अगर किसी को चलती गाडी में उलटी आती हो ( motion sickness ) तो यात्रा पर निकलते समय जो स्वर चल रहा हो अर्थात जिस तरफ की श्वास ज़्यादा चल रही हो उस पैर के नीचे आक के पत्ते रखे . यात्रा के दौरान कोई तकलीफ नहीं होगी .
_ आक के पीले पड़े पत्तों को घी में गर्म कर उसका रस कान में डालने से कान का दर्
द ठीक होता है .
_ आक का दूध कभी भी सीधे आँखों पर नहीं लगाना चाहिए . अगर दाई आँख दुःख रही हो तो बाए पैर के नाख़ून और बाई आँख दुःख रही हो तो दाए पैर के नाखूनों को आक के दूध से तर कर दे .
द ठीक होता है .
_ आक का दूध कभी भी सीधे आँखों पर नहीं लगाना चाहिए . अगर दाई आँख दुःख रही हो तो बाए पैर के नाख़ून और बाई आँख दुःख रही हो तो दाए पैर के नाखूनों को आक के दूध से तर कर दे .
_ रुई को आक के दूध और थोड़े से घी में भिगोकर दांत में रखने से दांतों का दर्द ठीक हो जाता है .
हिलते हुए दांत पर आक का दूध लगाकर आसानी से निकाला जा सकता है .
पीले पड़े आक के पत्तों के रस का नस्य लेने से आधा शीशी में लाभ होता है .
_ आक की कोपल को सुबह खाली पेट पान के पत्ते में रख चबा कर खाने से ३ से 5 दिनों में पीलिया ठीक हो जाता है .
_ सफ़ेद आक की छाया में सुखी जड़ को पीस कर १-२ ग्राम की मात्रा गाय के दूध के साथ लेने से बाँझपन ठीक होता है . बंद ट्यूब और नाड़ियाँ खुल जाती है ; मासिक धर्म गर्भाशय की गांठों में लाभ होता है .
_ पैरों के छाले इसका दूध लगाने से ठीक हो जाते है .
_ गठिया में आक के पत्तों को घी लगा कर तवे पर गर्म कर सेकें .
_ आक की रुई को वस्त्रों में भर , रजाई तकिये में इस्तेमाल करने से वात रोगों में लाभ मिलता है .
_ कोई घाव अगर भर ना रहा हो तो आक की रुई उसमे भर दे और रोज़ बदल दे .
_ आक के दूध में सामान मात्रा में शहद मिला कर लगाने से दाद में लाभ होता है .आक की जड़ के चूर्ण को दही में मिलाकर लगाना भी दाद में लाभकारी होता है .
_ आक के पुष्प तोड़ने पर जो दूध निकलता है उसे नारियल तेल में मिलाकर लगाने से खाज दूर होती है .इसके दूध को कडवे तेल में मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है .
_ इसके पत्तों को सुखाकर उसकी पावडर जख्मों पर बुरकने से दूषित मांस दूर हो कर स्वस्थ मांस पैदा होता है .
_ आक की मिटटी की टिकिया कीड़े पड़े हुए जख्मों पर बाँधने से कीड़े टिकिया पर आ कर मर जाते है और जख्म धीरे धीरे ठीक हो जाता है .
_ आक के दूध के शहद के साथ सेवन करने से कुष्ठ रोग थी होता है .आक के पुष्पों का चूर्ण भी इसमें लाभकारी है .
_ पेट में दर्द होने पर आक के पत्तों पर घी लगा कर गर्म कर सेके .
_ स्थावर विष पर २-३ ग्राम आक की जड़ को घिस कर दिन में ३-४ बार पिलाए .आक की लकड़ी का 6 ग्राम कोयला मिश्री के साथ लेने से शारीर में जमा पारा भी पेशाब के रास्ते निकल जाता है .
_ आक और भी कई रोगों का इलाज करता है पर ये योग वैद्य की सलाह से ही लेने चाहिए .
_ इसके अर्क प्रयोग से होने वाले हानिकारक प्रभाव को कम करने के लिए दूध और घी का प्रयोग करें .
पीले पड़े आक के पत्तों के रस का नस्य लेने से आधा शीशी में लाभ होता है .
_ आक की कोपल को सुबह खाली पेट पान के पत्ते में रख चबा कर खाने से ३ से 5 दिनों में पीलिया ठीक हो जाता है .
_ सफ़ेद आक की छाया में सुखी जड़ को पीस कर १-२ ग्राम की मात्रा गाय के दूध के साथ लेने से बाँझपन ठीक होता है . बंद ट्यूब और नाड़ियाँ खुल जाती है ; मासिक धर्म गर्भाशय की गांठों में लाभ होता है .
_ पैरों के छाले इसका दूध लगाने से ठीक हो जाते है .
_ गठिया में आक के पत्तों को घी लगा कर तवे पर गर्म कर सेकें .
_ आक की रुई को वस्त्रों में भर , रजाई तकिये में इस्तेमाल करने से वात रोगों में लाभ मिलता है .
_ कोई घाव अगर भर ना रहा हो तो आक की रुई उसमे भर दे और रोज़ बदल दे .
_ आक के दूध में सामान मात्रा में शहद मिला कर लगाने से दाद में लाभ होता है .आक की जड़ के चूर्ण को दही में मिलाकर लगाना भी दाद में लाभकारी होता है .
_ आक के पुष्प तोड़ने पर जो दूध निकलता है उसे नारियल तेल में मिलाकर लगाने से खाज दूर होती है .इसके दूध को कडवे तेल में मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है .
_ इसके पत्तों को सुखाकर उसकी पावडर जख्मों पर बुरकने से दूषित मांस दूर हो कर स्वस्थ मांस पैदा होता है .
_ आक की मिटटी की टिकिया कीड़े पड़े हुए जख्मों पर बाँधने से कीड़े टिकिया पर आ कर मर जाते है और जख्म धीरे धीरे ठीक हो जाता है .
_ आक के दूध के शहद के साथ सेवन करने से कुष्ठ रोग थी होता है .आक के पुष्पों का चूर्ण भी इसमें लाभकारी है .
_ पेट में दर्द होने पर आक के पत्तों पर घी लगा कर गर्म कर सेके .
_ स्थावर विष पर २-३ ग्राम आक की जड़ को घिस कर दिन में ३-४ बार पिलाए .आक की लकड़ी का 6 ग्राम कोयला मिश्री के साथ लेने से शारीर में जमा पारा भी पेशाब के रास्ते निकल जाता है .
_ आक और भी कई रोगों का इलाज करता है पर ये योग वैद्य की सलाह से ही लेने चाहिए .
_ इसके अर्क प्रयोग से होने वाले हानिकारक प्रभाव को कम करने के लिए दूध और घी का प्रयोग करें .
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