25 November 2012

मैं पाप बेचती हूँ



एक बार घूमते-घूमते कालिदास बाजार गये|

वहाँ एक महिला बैठी मिली | उसके पास एक मटका था और कुछ प्यालियाँ पड़ी थी |


कालिदास ने उस महिला से पूछा :

” क्या बेच रही हो ? “

महिला ने जवाब दिया :

” महाराज ! मैं पाप बेचती हूँ | “

कालिदास ने
आश्चर्यचकित होकर पूछा :

” पाप और मटके में ?

“ महिला बोली :

” हाँ, महाराज ! मटके में पाप है | “

कालिदास :
” कौन-सा पाप है ? “
महिला :
” आठ पाप इस मटके में है |

मैं चिल्लाकर कहती हूँ की मैं पाप बेचती हूँ पाप …
और लोग पैसे देकर पाप ले जाते है |”

अब महाकवि कालिदास को और आश्चर्य हुआ :

” पैसे देकर लोग पाप ले जातेहै ? “

महिला :
” हाँ, महाराज ! पैसे से खरीदकर लोग पाप ले जाते है | “

कालिदास :
” इस मटके में आठ पाप कौन-कौन से है ? “

महिला :
” क्रोध ,
बुद्धिनाश ,
यश का नाश ,
स्त्री एवं बच्चों के साथ अत्याचार
और अन्याय ,
चोरी ,
असत्य आदि दुराचार ,
पुण्य का नाश ,
और स्वास्थ्य का नाश …
ऐसे आठ प्रकार के
पाप इस घड़े में है | “

कालिदास को कौतुहल हुआ की यह तो बड़ी विचित्र बात है | किसी भी शास्त्र में नहीं आया है की मटके
में आठ प्रकार के
पाप होते है |

वे बोले : ”
आखिरकार इसमें क्या है ? ”

महिला : ” महाराज ! इसमें शराब है

शराब !
“ कालिदास महिला की कुशलता पर प्रसन्न होकर बोले:
” तुझे धन्यवाद है !

शराब में आठ प्रकार के पाप है यह तू जानती है और
‘ मैं पाप बेचती हूँ ‘
ऐसा कहकर बेचती है फिर भी लोग ले
जाते है |

धिक्कार है ऐसे लोगों को !


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