अभिशापों से भरी धरा को मैं कैसे वरदान लिखूँ
सोने की चिड़िया है कैसे मेरा हिन्दुस्तान लिखूँ
सोनचिरैया भी जब केवल विस्फ़ोटों की धुन गाती हो
बुलबुल के पंखों से भी जब बारूदों की बू आती हो
जब हत्यारे जमा हुए हों, घर-खेतों से बाज़ारों तक
जब विषधर फुफकार रहे हों झोंपड़ियों से मीनारों तक
जब अधनंगे लाखों बच्चे रोटी को भी तरस रहे हों
मुस्कानों की जगह आँख से खारे आँसू बरस रहे हों
जब निर्धनता गली-गली और चौराहों पर नाच रही हो
जब कंगाली फुटपाथों पर रोटी-रोटी बाँच रही हो
आहों और कराहों को मैं कैसे मंगलगान लिखूँ
सोने की चिड़िया है कैसे मेरा हिन्दुस्तान लिखूँ
जब शिक्षा के बाद हाथ में आती हो केवल बेकारी
जब आँसू में घुली हुई हो भूखे पेटों की लाचारी
जहाँ रूप के बाज़ारों में टके-टके काया बिकती हो
जहाँ आसमां के चंदा में भी केवल रोटी दिखती हो
जब खादी के पहन मुखौटे झूठ पड़ा हो सिंहासन पर
जब बेबस-लाचार नयन ले साँच खड़ा हो निर्वासन पर
पतझर का ही शासन हो तो फागुन कैसे भा सकता है
सारे जग की पीड़ा लेकर कैसे कोई गा सकता है
कैसे चिथड़ों से कपड़ों को मोती का परिधान लिखूँ
सोने की चिड़िया है कैसे मेरा हिन्दुस्तान लिखूँ
जब संसद में जमा हुए हों, सारे भारत के अपराधी
जब सुरसा के मुँह के जैसी बढ़ती जाती हो आबादी
जब जनता की चुनी मूरतें पड़ी हुई हों मदिरालय में
जब खादी और खाकी दोनों टंगी हुई हों वेश्यालय में
जब सारे जग की संपत्ति नेताजी के घर संचित हो
और देश की आधी जनता दो रोटी से भी वंचित हो
आँसू ही लिखते-लिखते जब आँखें भी हों खारी-खारी
कैसे क़लम निभा सकती है तब ख़ुशियों की ज़िम्मेदारी
रोते और सिसकते अधरों को कैसे मुस्कान लिखूँ
सोने की चिड़िया है कैसे मेरा हिन्दुस्तान लिखूँ
पाँच दिनों से भूखे बचपन की अंतड़ियाँ जब खाली हों
और बाढ़ की चर्चा में छप्पन भोगों की थाली हों
जब खाली पेटों वाले शव जला दिए हों गुमनामों में
और नाज के लाखों बोरे जमा हुए हों गोदामों में
जब माँओं ने बच्चों के शव गंदले पानी में ढोए हों
और देश के सत्ताधारी एसी कमरों में सोए हों
जिस भारत का स्वर्ण बुढ़ापा सर तक पानी में ज़िन्दा है
उस भारत की आज़ादी पर भारत माँ भी शर्मिंदा है
आँसू से कड़वे हाथों से कैसे मीठा गान लिखूँ
सोने की चिड़िया है कैसे मेरा हिन्दुस्तान लिखूँ
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