21 September 2012

सनातन संस्कृति की सप्त-पुरियाँ...


शास्त्रों में मुक्ति के पांच प्रकार बताये गये हैं...

१) ब्रह्म-ज्ञान
२) भक्ति द्वारा भगवत-कृपा प्राप्ति...
३) पुत्र-पौत्रादि, गोत्रज, कुटुम्बियो आदि द्वारा गया आदि तीर्थो में संपादित श्राद्ध कर्म...
४) धर्म-युद्ध और गौ-रक्षा आदि में मृत्यु...
५) कुरुक्षेत्र, पुष्कर आदि प्रधान तीर्थो में और सप्त प्रधान मोक्ष-दायिनी पुरियो में निवास-पूर्वक शरीर- त्याग सभी तीर्थ फल देने वाले और पुण्य प्रदान करने वाले होते हैं... अपनी अद्भुत विशेषताओं के कारण यह सप्त-पुरिया अत्यंत प्रसिद्द हैं...

" अयोध्या मथुरा माया कशी कांची अवंतिका | पुरि द्वारावती श्रेया: सप्तैता मोक्षयका: ||"

१) अयोध्या... यह सात मोक्षदायिनी पुरियो में प्रथम है... यह भगवा श्री हरि के सुदर्शन चक्र पर बसी है... भगवान् राम की जन्म-भूमि होने के कारण इसका महत्व बहुत है... इसका आकार मछली के समान है...स्कन्द-पुराण के वैष्णव खंड के अयोध्या महातम्य के अनुसार... अयोध्या का मान सहस्त्र-धारा तीर्थ से एक योजन पूर्व तक, ब्रह्म-कुण्ड से एक योजन पश्चिमतक... दक्षिण में तमसा नदी तक... और उत्तर में सरयू नदी तक है...
अयोध्या में ब्रह्मा जी द्वारा निर्मित ब्रह्म-कुण्ड है... और सीता जी द्वारा निर्मित सीता-कुण्ड भी है, जिसे भगवान् राम ने समस्त मनोकामनाओ को पूर्ण करने वाला बना दिया है... यहाँ सहस्त्र-धारा से पूर्व स्वर्ग-द्वार है... इस स्थान पर हवन , यज्ञ, दान पुण्य आदि अक्षय हो जाता है...

२) मथुरा-वृन्दावन. .. यह यमुना जी के दोनों तरफ बसा है... यमुना जी के दक्षिण भाग में इसका विस्तार ज्यादा है... यमुना जी का भी महत्व है... क्यूंकि यमुना जी सूर्य-पुत्री हैं और यमराज की बहन हैं... श्रीकृष्ण की प्रेमिका हैं... और भगवान् श्रीकृष्ण की जन्म-भूमि होने से इसका महत्व बहुत ज्यादा है...

३) हरिद्वार [ मायापुरी ]... यह तीसरी पवित्र पुरी है... यह एक शक्तिपीठ भी है... कनखल से ऋषिकेश तक का क्षेत्र मायापुरी कहलाता है... गंगा माता पर्वतो से उतरकर सर्वप्रथम यहीं समतल भूमि पर प्रवेश करती हैं... और मनुष्यों के पापो की निवृत्ति करती हैं...

४) काशी जी [ वाराणसी ]... यह नगरी भगवान् शिव के त्रिशूल पर बसी है... इस नगरी के लिए कहा जाता है की यह प्रलय काल में भी नष्ट नहीं होगी... 'वरुण' और 'असी' के मध्य होने से इसे वाराणसी कहा गया है... यहाँ पर सैंकड़ो घाट हैं... और विश्वेश्वर लिंग स्वरुप विश्वनाथ मंदिर... अन्नपूर्णा मंदिर... संकट-मोचन मंदिर... गीता मंदिर... और सहस्त्रों अन्य मंदिर और पवित्रतीर्थ स्थान हैं... जो काशी जी की शोभा और महातम्य को बढाते हैं...

५) कांची... पेलार नदी के तट पर स्थित शिव-कांची और विष्णु-कांची नामो से विभक्त हरी-हरात्मक पुरी है... शिव-कांची विष्णु-कांची से बड़ी है... यह मद्रास से ७५ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित है... यहाँ वामन मंदिर... कामाख्या मंदिर... सुब्रह्मण्यम मंदिर आदितीर्थ स्थल हैं...और सर्वतीर्थ सरोवर भी है...

६) उजैन... उज्जैन को पृथ्वी की नाभि कहा जाता है... यहाँ महाकाल ज्योतिर्लिंग और हरसिद्धि देवी शक्तिपीठ प्रसिद्द है... सम्राट विक्रमादित्य के समय में यह सम्पूर्ण भारत की राजधानी रही है... यह मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से ११५ किलोमीटर पश्चिम में है... यहाँ क्षिप्रा नदी शहर के बीचों-बीच से बहती है... यहाँ असंख्यो मंदिर हैं... प्रातन काल में ऐसा कहा जाता था की यदि १०० बैल-गाडी अनाज की भर कर यहाँ लायी जाए और एक-एक मुट्ठी अनाज यहाँ के हर मंदिर में दिया जाए... तो अनाज कम पड़ जायगा परन्तु मंदिरों की गिनती पूर्ण नहीं होगी...

७) द्वारका... द्वारका पुरी सप्त-पुरीयों के साथ ही चार धामों में भी परिगणित है... यह सातवी पुरी है जो गुजरात प्रदेश के काठियावाड़ जिले के पश्चिम समुद्र तट पर स्थित है... भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने जीवन का अधिकांश समय यहीं व्यतीत किया था... यहाँ अनेको मंदिर और तीर्थ-स्थल हैं...

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय...

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