21 September 2012

मंत्र का शाब्दिक मतलब होता है मनन करना।


मंत्र का शाब्दिक मतलब होता है मनन करना। मगर फल की दृष्टि से मंत्र का मतलब होता है मन की पीड़ा का त्राण यानी अंत करने वाला। मंत्र शक्ति से जब दु:खों से छुटकारे के धार्मिक उपाय पर विचार किया जाता है, तब एक ही मंत्र सर्वश्रेष्ठ माना गया है। वह
है - महामृत्युंजय मंत्र।


धर्म परंपराओं में यह शिव के महामृत्युंजय रूप की आराधना से रोग, काल भय और दु:खों के शमन का मंत्र है। किंतु शास्त्रों में इस मंत्र से कामनापूर्ति का भी महत्व बताया गया है। साथ ही यह शिव ही नहीं बल्कि अनेक देवताओं की उपासना का भी अद्भुत मंत्र है।

शास्त्रों के मुताबिक यह मंत्र 32 अक्षरों से बना है। किंतु ऊँ के जुडऩे पर मंत्र 33 अक्षरों का हो जाता है। इसलिए इसे तैंतीस अक्षरी मंत्र भी कहा जाता है। चूंकि मंत्रों में आने वाले अक्षर, शब्द, स्वर, व्यंजन, ध्वनि और बिंदु देवीय शक्तियों के ही रूप और बल के संकेत होते हैं। इसी तरह महामृत्युंजय मंत्र के 33 अक्षरों में 33 देवीय शक्तियां मानी गई है,जिससे यह मंत्र बहुत प्रभावशाली और शक्तिशाली माना जाता है।

ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
त्र - ध्रुव वसु। यम - अध्वर वसु। ब - सोम वसु। कम् - वरुण। य- वायु। ज - अग्नि। म - शक्ति। हे - प्रभास। सु - वीरभद्र। ग - शम्भु। न्धिम - गिरीश। पु - अजैक। ष्टि - अहिर्बुध्न्य। व - पिनाक। र्ध - भवानी पति। नम् - कापाली। उ - दिकपति। र्वा - स्थाणु। रु -भर्ग। क - धाता। मि - अर्यमा। व- मित्रादित्य। ब - वरुणादित्य। न्ध - अंशु। नात - भगादित्य। मृ - विवस्वान। त्यो - इंद्रादित्य। मु - पूषादिव्य। क्षी - पर्जन्यादिव्य। य - त्वष्टा। मा - विष्णुऽदिव्य। मृ - प्रजापति। तात -वषट। इस तरह मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1-1 प्रजापति और वषट यानी त्रिदेव की शक्तियां समाई है, इससे इसे स्मरण करने वाला काल, संकट, रोग व तमाम दःखों से सुरक्षित रहता है।

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