मृत्यु एक ऐसा सच है जिसे कोई भी झुठला नहीं सकता ।
मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है, इसका विस्तृत वर्णन है। किस प्रकार मनुष्य के प्राण निकलते हैं और किस तरह वह पिंडदान प्राप्त कर प्रेत का रूप लेता है।
* जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोल नहीं पाता है। अंत समय में उसमें दिव्य दृष्टि उत्पन्न होती है और वह संपूर्ण संसार को एकरूप समझने लगता है । उसकी सभी इंद्रियां नष्ट हो जाती हैं। वह जड़ अवस्था में आ जाता है, यानी हिलने-डुलने में असमर्थ हो जाता है। इसके बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगता है और लार टपकने लगती है । पापी पुरुष के प्राण नीचे के मार्ग से निकलते हैं ।
* मृत्यु के समय दो यमदूत आते हैं । वे बड़े भयानक, क्रोधयुक्त नेत्र वाले तथा पाशदंड धारण किए होते हैं । वे नग्न अवस्था में रहते हैं और दांतों से कट-कट की ध्वनि करते हैं । यमदूतों के कौए जैसे काले बाल होते हैं । उनका मुंह टेढ़ा-मेढ़ा होता है । नाखून ही उनके शस्त्र होते हैं। इन दूतों को देखकर प्राणी भयभीत होकर मलमूत्र त्याग करने लग जाता है। उस समय शरीर से अंगूष्ठमात्र (अंगूठे के बराबर) जीव हा हा शब्द करता हुआ निकलता है।
* यमराज के दूत जीवात्मा के गले में पाश बांधकर यमलोक ले जाते हैं। उस पापी जीवात्मा को रास्ते में थकने पर भी दूत भयभीत करते हैं और उसे नरक में मिलने वाली यातनाओं के बारे में बताते हैं । ऐसी भयानक बातें सुनकर पापात्मा जोर-जोर से रोने लगती है, किंतु उस पर बिल्कुल भी दया नहीं करते हैं ।
* इसके बाद वह अंगूठे के बराबर शरीर यमदूतों से डरता और कांपता हुआ, कुत्तों के काटने से दु:खी अपने पापकर्मों को याद करते हुए चलता है। आग की तरह गर्म हवा तथा गर्म बालू पर वह जीव चल नहीं पाता है । वह भूख-प्यास से भी व्याकुल हो उठता है । उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे ले जाते हैं। वह जीव जगह-जगह गिरता है और बेहोश हो जाता है। उसको अंधकारमय मार्गसे ले जाते हैं।
* यमलोक . पापी जीव को दो- तीन मुहूर्त में ले जाते हैं। इसके बाद उसे भयानक यातना देते हैं। यह भोगने के बाद यमराज की आज्ञा से यमदूत आकाशमार्ग से पुन: उसे उसके घर छोड़ आते हैं।
* घर में आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में पुन: प्रवेश करने की इच्छा रखती है, लेकिन यमदूत के पाश से वह मुक्त नहीं हो पाती और भूख-प्यास के कारण रोती है। पुत्र आदि जो पिंड और अंत समय में दान करते हैं, उससे भी प्राणी की तृप्ति नहीं होती, क्योंकि पापी पुरुषों को दान, श्रद्धांजलि द्वारा तृप्ति नहीं मिलती। इस प्रकार भूख-प्यास से बेचैन होकर वह जीव यमलोक जाता है।
* जिस पापात्मा के पुत्र आदि पिंडदान नहीं देते हैं तो वे प्रेत रूप हो जाती हैं और लंबे समय तक निर्जन वन में दु:खी होकर घूमती रहती है। काफी समय बीतने के बाद भी कर्म को भोगना ही पड़ता है, क्योंकि प्राणी नरक यातना भोगे बिना मनुष्य शरीर नहीं प्राप्त होता। मनुष्य की मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए। उस पिंडदान के प्रतिदिन चार भाग हो जाते हैं। उसमें दो भाग तो पंचमहाभूत देह को पुष्टि देने वाले होते हैं, तीसरा भाग यमदूत का होता है तथा चौथा भाग प्रेत खाता है। नवें दिन पिंडदान करने से प्रेत का शरीर बनता है। दसवें दिन पिंडदान देने से उस शरीर को चलने की शक्ति प्राप्त होती है।
• शव को जलाने के बाद पिंड से हाथ के बराबर का शरीर उत्पन्न होता है । वही यमलोक के मार्ग में शुभ-अशुभ फल भोगता है। पहले दिन पिंडदान से मूर्धा (सिर), दूसरे दिन गर्दन और कंधे, तीसरे दिन से हृदय, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नवें और दसवें दिन से भूख-प्यास उत्पन्न होती है । यह पिंड शरीर को धारण कर भूख-प्यास से व्याकुल प्रेतरूप में ग्यारहवें और बारहवें दिन का भोजन करता है ।
* यमदूतों द्वारा तेरहवें दिन प्रेत को बंदर की तरह पकड़ लिया जाता है । इसके बाद वह प्रेत भूख-प्यास से तड़पता हुआ यमलोक अकेला ही जाता है। यमलोक तक पहुंचने का रास्ता वैतरणी नदी को छोड़कर छियासी हजार योजन है । उस मार्ग पर प्रेत प्रतिदिन दो सौ योजन चलता है । इस प्रकार 47 दिन लगातार चलकर वह यमलोक पहुंचता है । मार्ग में सोलह पुरियों को पार कर यमराज के घर जाता है।
* इन सोलह पुरियों के नाम इस प्रकार है - सौम्य, सौरिपुर, नगेंद्रभवन, गंधर्व, शैलागम, क्रौंच, क्रूरपुर, विचित्रभवन, बह्वापाद, दु:खद, नानाक्रंदपुर, सुतप्तभवन, रौद्र, पयोवर्षण, शीतढ्य, बहुभीति । इन सोलह पुरियों को पार करने के बाद प्राणी यमपाश में बंधा मार्ग में हाहाकार करते हुए यमराज पुरी जाता है । ( मरने के बाद क्या होता है , श्री गरुण पुराण कि यह बात -.-
मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है, इसका विस्तृत वर्णन है । )
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गरुण पुराण अध्याय तीन का आखिरी भाग
श्री विष्णु भगवान श्री गरुण जी को आगे बताते हैं --------
धर्म राज एक बिशाल भैसे के ऊपर आसीन रहते हैं
उनकी बत्तीस भुजाओं में शस्त्र रहते हैं
उनकामुख,नासिका एवं अन्य अंग भयानक होते हैं
चित्र गुप्त जो स्वयं भयानक शरीर वाले हैं , धर्म राज के साथ होते हैं और उनके साथ होते हैं ज्वर रोग एवं मृत्यु / अब इस स्थिति में चित्र गुप्त अपना निर्णय सुनाते हुए कहते हैं … ......
अरे दुराचारी पापी तुम धन इकट्ठा करने में लगे रहे , पापी लोगों की संगत की , प्रसन्नता से पाप किया और अब तूं इन कर्मों के फल के रूप में यहाँ की यातनाओं को भोग / धर्म राज की आज्ञा के अनुकूल प्रचंड और चंडक यमदूत उस पापी को नरक में पहुंचाते हैं / नरक में एक पांच योजन चौड़ा एवं एक योजन ऊँचा बृक्ष है जिसे जलती हुयी अग्नि का बृक्ष कह सकते हैं / यमदूत उस बृक्ष से बाँध कर पिटाई करते हैं / यम दूत उस पापी के अतीत में किये गए पापों को बताते हुए उसे खूब पीटते हैं / पीटाई के समय शालमली बृक्ष के पत्ते जो गिरते रहते हैं वे उस पापी के देह में सूई की भांति छेड़ करते रहते हैं /
नरक चौरासी लाख प्रकार के हैं जिनमें से कुछ के नाम कुछ इस प्रकार से हैं … ....
तामिस्र , लौह्शंक , महारौरव , शाल्मली , रौरव , कुडमल , काकोल , सविस , संजीवन महापथ , अविची , तपन आदि / इन नरकों में नाना प्रकार के किये गए कर्मों को भोगना होता है / यहाँ इन नरकों में पापी कल्पों तक भोगता रहता है और जब सभीं यातनाएं भोग लेता है तब अंत में वह बिषय – वासना भोग [ स्त्री - पुरुष सह्बास ] के लिए अन्धतामिस्त्र , रौरव , आदि नरकों में जाता है /
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