स्थान कोई भी हो कारण एक ही है सच्चे देहधारी गुरू से दीक्षित न होना
दिव्य हिमालय श्री विष्णु का अंश है, पार्वती जगदम्बा का पिता है, संहारक श्री शंकर का ससुर है, ऋषि मुनियों की तपस्थली है। विष्णु के अवतार श्री कृष्ण ने , पुत्र प्राप्ति के लिए द्वारिका से आकर हिमालय में ब्राह्मण बालक उपमन्यु से "ऊॅ नम: शिवाय"मंत्र की दीक्षा लेकर, सद्गुरू उपमन्यु के समीप स्थित होकर सोलह महिनें तक उग्र तप किया तब प्रसन्न होकर प्रभू शिव तथा पार्वती ने ८-८ वरदान कृष्ण को दिये, जिस में मुख्य वरदान - पुत्र प्राप्ति और ब्राह्मणों का पूजन थे।(श्री शिवमहापुराण उमासंहिता अध्याय १ से ३ ) ऐसे दिव्य हिमालय के निवासी भी कई प्रकार से दु:खी है।
इस कलियुग में दिव्य नदी नर्मदा सर्वोत्तम तीर्थ है। जहॉं श्री विष्णु के अवतार राम, शेषावतार लक्ष्मण तथा रूद्रावतार हनुमान जी ने दैत्यों के वध के पश्चात् प्रायश्चित किया था।ऐसी दिव्य नदी नर्मदा के तट पर जन्मे व्यक्ति कई प्रकार से दु:खी है। । कई पीढि.यों से रह रहे है, नर्मदा तट पर ही जन्मे, पले, सात्विक, शाकाहारी, सन्तों महात्माओं की सेवा करने वाले, परिक्रमा-वासियों को भोजन कराने वाले, कन्या भोजन कराने वाले मनोहर लाल नामदेव कई प्रकार से दु:खी थे।
काशी-हिमालय-नर्मदा तट एवं उज्जैन इन सब दिव्य तीर्थों पर शिवलिंग ही शिवलिंग है और अधिकांश जनता इन्हीं शिवलिंगों का पूजन करती है फिर भी इन महानगरों के व्यक्ति कई प्रकार से दु:खी है।
कोलकत्ता महानगर में शिवमंदिर बनवाने वाले एक गुजराती ब्राह्मण जिनके काशी महानगरी में चार कपड़े के शो रूम बिक गये हैं और उनके परिवार वाले मजदूरी कर रहे हैं लाल ईमली धारीवाल के मालिक (अग्रवाल समाज के) जिनकी गणना दस मुख्य व्यक्तियों में थी आज वे धन की कमी और अन्य कई प्रकार से दु:खी हैं ।
लगातार ३० वर्षो तक हर वर्ष हिमालय स्थित श्री अमरनाथ का दर्शन- पूजन करने वाले की प्रकृति में तनिक भी सुधार नहीं हुआ। उनके सन्तान नहीं हुई और आर्थिक दृष्टि से भी कमजोर रहे।
अयोध्या धाम में जन्मे, पले, अयोध्या धाम का सेवन करने वाले, ब्रज चौरासी कोस की यात्रा करने वाले कई प्रकार से दु:खी क्यों है? तिरूपति बालाजी का नियम से कई वर्षो तक दर्शन करने वाले, वहॉं दान करने वाले कई प्रकार से दु:खी है। श्रीनाथजी का कई वर्षो से दर्शन करने वाले ,वहॉं दान करने वाले कई प्रकार से दु:खी है। श्री जगन्नाथपुरी के निवासी, रथयात्रा में भाग लेने वाले सभी प्रकार से सुखी क्यों नहीं है?
गुजरात में सूरत एक महानगर है। गुजराती समाज अधिकांश सात्विक है, शाकाहारी है, श्रीनाथजी के भक्त है। उस महानगर में सभी देवी-देवता विराजमान है, कई गुरू है। उस महानगर में प्लेग, भूकम्प, बाढ़ से अरबों रूपयों की हानि हुई। वहॉ के लोग कई प्रकार से दु:खी क्यों है?
पंजाब प्रान्त में अयोध्या की गद्दी वाले श्रीलाल जी का बहुत प्रभाव है। इस गद्दी के व्यक्ति कई प्रकार से दु:खी है।
हावड़ा-कोलकत्ता महानगर में श्री तारकेश्वर महादेव विराजमान है। श्री दुर्गा का काली मंदिर है। ठाकुर श्री रामकृष्ण परमहंस देव का दक्षिणेश्वर मठ है, विवेकानन्द के अनुयायी है फिर भी कई प्रकार से दु:खी क्यों ?
सिक्ख धर्म को मानने वाले, नियमित गुरूद्वारे जाने वाले ,गुरूग्रन्थ साहिब का पाठ करने वाले, लंगर बनाने वाले तथा लंगर में दान देने वाले क्या सभी प्रकार से सुखी है? इस समाज का एक व्यक्ति................ जिसने सौ भण्डारे बनाने में नि:शुल्क सेवा की उसने इस आश्रम को बताया कि वह कई प्रकार से दु:खी है।
विश्नोई समाज के सभी सिद्धान्त सही है, मानव का कल्याण करने वाले है। इन सब सिद्धान्तों को मानने वाले भी कई प्रकार से दु:खी क्यों हैं?
आर्य समाज के सिद्धान्त सही है फिर भी इस धर्म को मानने वाले क्या हर प्रकार से सुखी है?
दिव्य नर्मदा तट पर एक महात्मा ने हर वर्ष यज्ञ करवाया। १२वर्ष तक लगातार यज्ञ करवाने पर भी उन महात्मा की प्रकृति में किञ््चित मात्र भी सात्विकता नहीं आई। ऐसे अनैकों उदाहरण है जहॉं पर सात्विक, धार्मिक, शाकाहारी, ईमानदार, मेहनती मनुष्य भी आर्थिक अभाव आदि के कारण कई प्रकार से दु:खी है।
हर हिन्दू के घर में दीपावली पर बहुत ही श्रद्धा भक्ति से लक्ष्मी पूजन होता है, पञ््ंचाग में अथवा समाचार पत्रों में लक्ष्मीपूजन का मूहुर्त भी प्रकाशित होता है, ऐसे कर्मकाण्डी ब्राह्मणों द्वारा जो कि कई पीढ़ियों से लक्ष्मी-पूजन करवाते आ रहे हैं उनके द्वारा लक्ष्मी-पूजन करवाया जाता है- ऐसे कर्मकाण्डी ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, दक्षिणादि से सन्तुष्ट किया जाता है, अखंड दीपक जलाते है, रात्रिभर जागरण करते है, द्वार भी खुला रखते है(ताकि लक्ष्मीजी को आने में सुगमता हो) फिर भी धन की वृद्धि क्यों नहीं होती ?
श्री कृष्ण, श्री विष्णु के अवतार है, पाण्डवों के संबंधी है फिर भी पाण्डव लोग जुऍं में हारे और तेरह वर्ष (राजकुमार होते हुए भी) वनवास में भीख मॉंगकर रहे। श्री कृष्ण ने पाण्डवों की सहायता के लिए दुर्योधन का हाथ स्तम्भित क्यों नहीं किया?
हिन्दू समाज में यज्ञ की बड़ी महिमा है। शास्त्र में भी इसके महत्व का वर्णन है। सनातन धर्मी, आर्य समाजी, नामधारी सिक्ख आज भी यज्ञ करते है। हम सब के प्रथम पिता ( ब्रह्मा के पुत्र, सती जगदम्बा के पिता, संहारक शंकर के ससुर) दक्ष प्रजापति ने सत्युग में, समस्त विश्व का कल्याण हो ऐसी शुभकामना से यज्ञ जैसा शुभ कर्म प्रारंभ किया था। इस यज्ञ में श्री विष्णु अध्यक्ष थे जो कि सृष्टि के पालन करने वाले है। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा भी उपस्थित थें। सती जगदम्बा भी आ गई थी, अग्नि देवता हजार मुख बनाकर स्वयं आहुतियांॅ स्वीकार करने के लिए उपस्थित थे। ८८००० हजार वेदों के जानकार ऋषि एक साथ आहुतियॉं डालते थे। इन्द्र-अग्निऱ्यम-नैऋति-वरूण- वायु -कुबेर-ईशान-लोकपाल आयुध लेकर उस यज्ञ की रक्षा कर रहे थे।पृथ्वी के सभी देवता(पत्नियों सहित )अष्टलोकपाल, सभी राजा, ऋषि-मुनि उपस्थित थे केवल एक संहारक शंकर जी ही नहीं थे।(जबकि संहारक की यज्ञ में कोई आवश्यकता भी नहीं है) सारा प्रयत्न करने पर भी यज्ञ विध्वंस हो गया, दक्ष प्रजापति मारे गए।
शुभ कर्म आज भी शुभ फल क्यों नहीं दे रहा है ? गरीब को रोटी-कपडा,बीमार को औषधि, दूध-फल देना, अस्पताल निर्माण, विद्यालय निर्माण , छात्रावास निर्माण ,गरीब छात्रों को भोजन वस्त्र, पाठ्य पुस्तकें आदि देना, तलाब, कुऑं प्याऊ आदि निर्माण, मंदिर निर्माण, धर्मशाला निर्माण, श्मशान निर्माण, दाहकर्म हेतु लकड़ियों का दान, यज्ञ में भाग लेना, कोढ़ियों की सहायता, अन्धों की सेवा, गऊसेवा, चारों धाम-सातों पुरियों की यात्रा, वहॉं पूजा-पाठ और दान करना, भण्डारें करना, छायादार पेड़ लगाना, पूजा के पुष्पों के बाग लगाना, कन्यादान इत्यादि शुभ कर्म करने वाले व्यक्ति कई प्रकार से दु:खी क्यों है?
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