पौराणिक मान्यता है कि संजीवनी विद्या व मंत्र के असर से दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मरे हुए दैत्यों में फिर से प्राण फूंक दिए थे। शुक्राचार्य ने यह अद्भुत संजीवन विद्या व मंत्र शक्तिदेवाधिदेव महादेव को कठिन तपस्या से प्रसन्न कर पाई थी।
शास्त्रों के मुताबिक सांसारिक जीवन में इस संजीवन मंत्र के असर से अकाल मृत्यु का भय, संकट व दु:ख दूर होते है। यही नहीं, इस मंत्र से लाइलाज बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है।
- सवेरे स्नान के बाद यथासंभव गंगाजल या किसी पवित्र जल में कच्चा दूध मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करें। साथ ही शिव की सफेद चंदन, धतूरा, बिल्वपत्र, सुपारी व नैवेद्य चढ़ाकर पूजा करें।
- पूजा के बाद इस संजीवन मंत्र का 11 माला हर रोज, न संभव हो तो कम से कम 1 माला यानी 108 बार मंत्र जप रुद्राक्ष की माला से जरूर करें। यह संजीवनी मंत्र है -
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: त्र्यबकंयजामहे
ॐ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ॐ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम्
ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि ॐ उर्वारुकमिव बंधनान्
ॐ धियो योन: प्रचोदयात् ॐ मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्
ॐ स्व: भुव: भू: स: जूं हौं ॐ।।
- मंत्र जप के बाद जानकारी होने पर खुद या न होने पर किसी विद्वान ब्राह्मण से हवन की जानकारी लेकर 108 बार घी में भिगोए बिल्व पत्रों या बिल्व फलों से यह मंत्र बोल हवन करें या करवाएं। वटवृक्ष की समिधा यानी हवन सामग्री से हवन भी असाध्य रोगों व किसी भी व्यक्ति पर मंडरा रहे काल भय को दूर करने में बड़ा असरदार सिद्ध होता है।
- भगवान शिव की आरती करें। शिवाभिषेक व पूजा के जल, सुपारी व प्रसाद को ग्रहण करें।
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