03 December 2012

!!! अष्टाध्यायी !!!

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संस्कृत के व्याकरण के अष्टाध्यायी पुस्तक उच्चकोटि की पुस्तक है, इसके लेखक पाणिनि ऋषि वेद और इसकी स्नस्क्तित के सामान नतमस्तक होते हैं और व्याकरण के नियमानुसार वह इसमें किसी प्रकार की भी भूल नही देखता है l इसलिए यह कहना की वेद उन अश्भ्य मनुष्यों के बनाये हुए हैं जो जंगली जानवरों से लड़ने, भेड़ बकरियां चराने, और थोड़ी से खेती बाडी करने के अतिरिक्त कुछ जानते नही थे सरासर अज्ञान और बुद्धिहीनता पर आधारित है l


एक यूनानी इतिहासकार लिखता है की यूनान के बड़े बड़े हकीम भारत के छोटे से छोटे वैध्य की बराबरी नही कर सकते हैं l जिस योग्यता से भारत वर्ष के वैध्य आकाश के हालात बतलाते हैं उस योग्यता से यूनान के हकीम जमीन के हालात भी नही बता सकते l भारत वर्ष का ज्योतिष विज्ञान पूर्णतः विकसित और पूर्ण है l इस विज्ञान के प्राचीन लेखक बताते हैं की इसका आरम्भ वेद से होता है l ज्योतिष वेद का एक अंग है l



यूरोप के जिन विद्वानों ने संस्कृत का अध्ययन बिना पूर्व दोषों के किया है उन्होंने बिना संदेह इस बात को स्वीकार किया है की विश्व में आज तक जितना ज्ञान विज्ञान प्रकाशित हुआ है उस सब के आविष्कारक आर्य ही थे l जब दुनिया की दूसरी जातियां अज्ञान की नींद से उठी ही नही थीं तब तक भारत के आर्य सब कलाओं और विधाओं में आविष्कार कर उनको पूर्णतया विकसित कर चुके थे l इसलिए हंटर साहब लिखते हैं की वर्तमान समय में भी जितना ज्ञान भारत वर्ष यूटोप को सिखा सकता है उतना ज्ञान यूरोप भारत को नही सिखा सकय l आजकल भारत वर्ष यूरोप से केवल भोतिकता सीख रहा है, परन्तु जब हम संस्कृत साहित्य को पढ़ते हैं तो भोतिक विज्ञान का भी विस्तार से संस्कृत में लिखा है l परन्तु इसको जाननेवाले कम हैं और उस कारण भारत वर्ष यूरोप का आभारी बना है l Electricity, Meteorology, Hydrology, Chemistry, Botany इत्यादि सब विज्ञान संस्कृत में हैं और बहुत ऊंची पद्धति से लिखे हैं l यूरोप अभी तक मनोविज्ञान में बहुत पीछे है और भारत वर्ष शब्दियों तक इसका पाठ पढ़ा सकता है l अतः हम आशा करते हैं की यूरोप के लोग संस्कृत का जितना अध्ययन करते जायेंगे उतना ही भारत से बहुत कुछ सीख सकेंगे l

संस्कृत में विभिन्न विज्ञानों का भंडार पड़ा है l प्रत्येक विज्ञान के लेखकों ने स्वीकार किया है की प्रत्येक विज्ञान का मूल वेद से शुरू होता है l वेदों में सब विज्ञानों भोतिक और अध्यात्मिक का बीज अर्थात मूल विद्यमान है l

विज्ञान के लेखक ने उसके जानने का दवा नही किया है परन्तु यह कहा है की हम इस ज्ञान को वेद से प्राप्त कर इसका स्पष्टीकरण कर रहे हैं l



मुंबई के पूर्व राज्यपाल इन्फिन्स्त्न लिखते हैं " संस्कृत भाषा यूनानी से अधिक पूर्ण और लातिनी से अधिक विशाल और दोनों से अधिक मीठी और वैज्ञानिक है l इस भाषा की रचना इस प्रकार श्रेष्ठ और वैज्ञानिक की इस से अधिक पूर्ण, सम्पन्न और वैज्ञानिक रचना होना सम्भव नही है l "

जय हिन्दू राष्ट्र !

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