‘‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’’।
यह नन्हीं-सी, विराट् शब्दावली अकराण या अनायास ही नहीं बन गयी थी,
बल्कि हमारे ऋषियों-मनीषियों के दीर्घकालीन गवेषणात्मक चिन्तन, ध्यान, आत्मानुभूति (ब्रह्मदर्शन) के फल-स्वरूप ही बन पायी।
बल्कि हमारे ऋषियों-मनीषियों के दीर्घकालीन गवेषणात्मक चिन्तन, ध्यान, आत्मानुभूति (ब्रह्मदर्शन) के फल-स्वरूप ही बन पायी।
‘‘सत्यम शिवम् सुन्दरम्’’— यह अनुपम शब्दावली, तीन स्तरों पर व्याप्त ईश्वरीय सत्ता की परिचायिका है। तीन स्तरों पर व्याप्त अनादि, अनन्त, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान्, परम कृपालु परमेश्वर को हम एक शब्द में ‘‘शिव’’ कहकर व्यक्त करते हैं। दो अक्षरों के इस छोटे से सरल नाम में संपूर्ण ब्रह्माण्ड का सार समाया हुआ है।
यदि मनुष्य के लिये सबसे अधिक कल्याणकारी, अमृतोपम कुछ हो सकता है तो वह यही लगुतम, महानतम और मधुरतम शब्द है ‘‘शिव’’।
मेरे रोम -रोम में तुम ही तुम हो
इस संसार के रक्षक तुम ही तुम हो
बोलो ॐ नमः शिवाय
मेरे रोम -रोम में तुम ही तुम हो
इस संसार के रक्षक तुम ही तुम हो
बोलो ॐ नमः शिवाय
!! हर हर महादेव !!
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