वह शक्ति जिसके द्वारा हम जीवित हैं |वह शक्ति जो हमारे रक्त शिराओं में रक्त को प्रवाहित करता है | वह शक्ति जो हमारे विभीन भावनाओं को मह्शूश कराता है आखिर हम भावनाएं कैसे मह्शूश करते हैं |
हम प्रेम ,घृणा , क्रोध ,आनंद आदि कैसे मह्शूश करते हैं | कौन भीतर बैठ कर यह सब मह्शूश करता है |और किसके द्वारा मह्शूश करता है | ये हमारे रहश्य में उतरने के पहले के प्रश्न हैं जो सार्थक हैं |अधिकांश व्यक्ति इन प्रश्नों पर ध्यान नहीं देता क्यों ? क्योंकि वह वासनाओं से परेशान वह नित्य प्रति अपनी क्षुधा पूर्ति में लगा रहता है ,काम में डूबा रहता है और जब इससे थोडा उपर उठता है तो हम सुखी रहेंगे भविष्य में इसलिए धन कमा सकें ऐसा सोचता है मोटर बँगला के चक्कर में पड जाता है |
ये बुरा नहीं है किन्तु इसमें हीं डूब जाना ठीक नहीं | ईश्वर ने अदभुत शक्ति दी हमारे अंदर वह है संतानोत्पति की क्षमता किन्तु हम इसमें हीं डूब जातें हैं | डूब जातें है का मतलब संतान उत्पन्न किया फिर उसके लालन पालन में लग गये |यह भी अनिवार्य है किन्तु इसी में फंसे रह जाना उचित नहीं | हम कब अपने लिए समय देतें हैं |
बस जरा सा इससे बाहर निकले की हमारी यात्रा आरम्भ हुई परमात्मा के तरफ बहुत आसान है बस जरा मनोबल को मजबूत करने की आवश्यकता है और बाहर निकलने की चेष्टा चाहिए | भौतिक शास्त्र में एक सिद्धांत है ऊर्जा का क्षय नहीं होता सिर्फ रूपांतरण होता है और यह बिलकुल सत्य है | कुण्डलिनी शक्ति जगाने के कर्म में बस इसी सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है |
वह शक्ति जो हमारे कण कण में बह रही है उसे सुनियोजित करके एक विशेष विधि द्वारा एक विशेष स्थान तक पहुँचाया जाए | कौन सा स्थान है वह जहाँ उस शक्ति को पहुंचाना है ,वह है सिर में स्थित "सहस्त्रार चक्र" बस विशेष उर्जा को वहाँ पहुंचा देना है फिर आनंद की शुरुआत हो गयी |
तो आइये शुरुआत करते हैं | आपके प्रश्न आमंत्रित हैं | आप सिर्फ और सिर्फ कुण्डलिनी शक्ति पर प्रश्न करें आपका स्वागत है |
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