28 November 2012

कर्म रहस्य:-


पुरुष और प्रकृति -ये दो हैं ।

जिसमे से पुरुष परिवर्तनशील नहीं होता और प्रकृति परिवर्तनशील होती है।जब पुरुष प्रकृति के साथ संबंध जोड़ता है तब प्रकृति की 'क्रिया' पुरुष का 'कर्म' बन जाती है।प्रकृतिक क्रियायों से पुरुष की ममता रहती है,इससे जो भी परिवर्तनशील क्रिया रहती है वो 'कर्म' कहलाती है।

जब प्राकृतिक क्रियायों से पुरुष की ममता टूट जाती है तो वही 'कर्म' पुरुष के लिए 'अकर्म' हो जाता है।

कर्म तीन तरह के होते हैं -क्रियमाण,संचित,और प्रारब्ध।वर्तमान मे किए गए कर्म क्रियमाण ,वर्तमान से पहले के किए गए कर्म 'संचित' और संचित मे से जो कर्म फल देने के लिए उन्मुख होते हैं वो 'प्रारब्ध' कर्म कहलाते हैं।
क्रियमाण कर्म दो तरह के होते है-शुभ और अशुभ।शास्त्रानुसार किए गए कर्म शुभ और काम,क्रोध,लोभ,आसक्ति आदि को लेकर जो कर्म किए जाते है वो अशुभ कर्म कहलाते हैं।शुभ और अशुभ कर्मो के दो परिणाम-फल और संस्कार है।फल और संस्कार के दो भेद है शुद्ध और अशुद्ध। क्रियमाण कर्म का महत्व अधिक होता है ,शास्त्रों के नीति और नियम के अनुशार किए गए कर्म से शुद्ध फल और शुद्ध संस्कार की प्राप्ति होती है। 

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