15 October 2012

क्या स्त्रियों को वेदाधिकार नहीं है... ?



इस विषय पर मैं पाठकों का ध्यान कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों की ओर दिलाना चाहता हूँ :

०१. जब ऋग्वेद के मन्त्र द्रष्टा ऋषि स्त्रियां हो सकतीं हैं तो उनको अध्ययन के अधिकार का निषेध करना मेरी दृष्टि से कभी समयविशेष की आवश्यकता रही होगी, आज इस बात की आवश्यकता नहीं।

०२. ऋग्वेद के मन्त्रों का दर्शन करने वाले ४०२ ऋषियों में से ३७७ पुरुष तथा २५ महिलायें हैं, जब देवता हिरण्यगर्भ प्राण इन २५ ऋषिकाओं के पवित्र हृदय में वेदमन्त्रों का प्राकट्य कर सकते हैं, तो फिर माताओं को वेदाध्ययन का अधिकार न देने का कोई औचित्य नहीं।

०३. बृहदारण्यकोपनिषद् में गार्गी एवं मैत्रेयी के याज्ञवल्क्यमुनि के साथ संवाद को देख कर कहीं से भी नहीं लगता कि वे अपने वैदिक ज्ञान में यजुर्वेद के इस श्रेष्ठतम मुनि से कहीं भी कम होंगी।

०४. इसके अतिरिक्त स्मृतिवाक्यों ने स्वीकार किया कि प्राचीन काल में स्त्रियों को गायत्री मन्त्र भी दिया जाता था ओर मौञ्जी बन्धन भी किया जाता था। पुरा कल्पे तु नारीणां मौज्ञ्जी बन्धनमिष्यते इत्यादि।

०५. पत्नी शब्द का संस्कृत में अर्थ ही होता है पति के साथ यज्ञ में संयुक्त होने वाली... हम जानते हैं कि वैदिक काल में कोई भी यज्ञ यजमानी के बिना नहीं हो सकता था... अब अगर उसको वेद का ज्ञान नहीं होगा, तो वह वैदिक यज्ञ कैसे सम्पन्न करेगी ?

०६. हां, कुछ अपेक्षाकृत आधुनिक धर्मशास्त्रों में और पुराणों में स्पष्ट निषेध है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि जब विदेशियों के आक्रमण के परिणाम स्वरूप स्त्रियों का जीवन भारत में असुरक्षित होता चला गया है, तभी घूंघट से ले कर सारे सीमित करने वाले नियम उनकी सुरक्षा के लिये वैसे ही बनाये गये हैं। जैसे आज से कुछ वर्ष पहले तक फिलिस्तीन की मुसलमान लड़कियां कभी अपने बाल और सिर नहीं ढकती थी, पर अब इतने अधिक अत्याचार के उपरान्त अधिकतर अपनी सुरक्षा के लिये उन्हें ढकने लगी हैं।

०७. ऋग्वेद १०:८५ के सम्पूर्ण मन्त्रों की ऋषिकाएँ " सूर्या सावित्री" हैं।

०८. ऋग्वेद की ऋषिकाओं की सूची ब्रह्म देवता के २४ अध्याय में इस प्रकार है -

घोषा गोधा विश्ववारा अपालोपनिषन्नित ।
ब्रह्म जाया जहुर्नाम अगस्तस्य स्वसादिती !!८४!!
इन्द्राणी चेन्द्र माता चा सरमा रोमशोर्वशी ।
लोपामुद्रा च नद्यस्य यमी नारी च शाश्वती !!८५!!
श्री लक्ष्मिः सार्पराज्ञी वाक्श्रद्धा मेधाच दक्षिण ।
रात्रि सूर्या च सावित्री ब्रह्मवादिन्य ईरितः !!८६!!


०९. ऋग्वेद के १०:१३४, १०:३९, १९:४०, ८:९१, १०:५, १०:१०७, १०:१०९, १०:१५४, १०:१५९, १०:१८९, ५:२८, ८:९१ अदि सूक्तों की मंत्रद्रष्टा यह ऋषिकाएँ हैं।

१०. आचार्य श्री मध्वाचार्य जी ने महाभारत निर्णय में द्रौपदी की विद्वता का वर्णन करते हुए लिखा है :

वेदाश्चप्युत्तम स्त्रीभिः कृष्णात्ताभिरिहाखिलाः !

इससे यह प्रमाणित होता है कि महाभारत काल में भी स्त्रियाँ वेदाध्ययन करती थीं।

११. तैत्तिरीय ब्रह्मण में सोम द्वारा 'सीता सावित्री' ऋषिका को तीन वेद देने का वर्णन विस्तारपूर्वक आता है। (तैत्तिरीय ब्राह्मण १:३:१० )

१२. वभूव श्रीमती राजन शांडिलस्य महात्मनः !
सुता धृतव्रता साध्वी, नियता ब्रह्मचारिणी !!
साधू तप्त्वा तपो घोरे दुश्चरम स्त्री जनेन ह !
गता स्वर्ग महाभागा देव ब्रह्मण पूजिता!! 
महाभारत , शल्य पर्व ५४:९ !!

अर्थात:- महात्मा शांडिल्य की पुत्री 'श्रीमती' थी, जिसने व्रतों को धारण किया। वेदाध्ययन में निरंतर प्रवृत्त थी! अत्यंत कठिन तप करके वह देवी ब्राह्मणों से पूजित हुई और स्वर्ग सिधारीं।

१३. अत्र सिद्धा शिवा नाम ब्राह्मणी वेद पारगा!
अधीत्य सकलान वेदान लेभेSसंदेहमक्षयम !! महाभारत, उद्योग पर्व १९०:१८ !!

अर्थात:- शिवा नामक ब्राह्मणी वेदों में पारंगत थीं, उसने सब वेदों को पढ़कर मोक्ष प्राप्त किया !

१४. विष्णु पुराण १:१० और १८:१९ में तथा मार्कंडेय पुराण अध्याय २२ में भी इस प्रकार ब्रह्मवादिनी (वेद और ब्रह्म का उपदेश करने वाली) महिलाओं का वर्णन है।

१५. आचार्य शंकर को भारती देवी के साथ शास्त्रार्थ करना पड़ा था। उसने ऐसा अद्भुत शास्त्रार्थ किया था कि बड़े-बड़े विद्वान भी अचंभित रह गए थे।

शंकर-दिग्विजय में भारती देवी के सम्बन्ध लिखा है-


सर्वाणि शास्त्राणि षडंग वेदान,
कव्यादिकान वेत्ति, परंच सर्वम !
तन्नास्ति नो वेत्ति यदत्र वाला,
तस्मादभुच्चित्र पदम् जनानाम !! 
शंकर दिग्विजय ३:१६ !!

अर्थात:- भारती देवी सर्वशास्त्र तथा अंगों सहित सब वेदों और काव्यों को जानती थीं। उससे बढ़कर श्रेष्ठ और विद्वान् स्त्री और न थी।

आज जिस प्रकार स्त्रियों के शास्त्राध्ययन पर रोक लगी जाती है, यदि उस समय ऐसे प्रतिबन्ध होते तो याज्ञवल्क्य और शंकराचार्य से शास्त्रार्थ करने वाली स्त्रिया किस प्रकार हो सकती थीं?

ऐसे अनेकों प्रमाण मिलते हैं, जिनसे यह स्पष्ट होता है कि स्त्रियाँ भी पुरुषों की तरह यज्ञ करती और कराती थीं! वे यज्ञ-विद्या, ब्रह्म-विद्या आदि में पारंगत थीं। वेद, उपनिषद् आदि धर्मशास्त्रों पर स्त्रियों का सामान अधिकार सर्वदा रहा है।



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