15 November 2012

इस रविवार ऐसे लगाएं एक दीपक, नहीं सताएगा अकाल मृत्यु का डर


स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी यानी धनरतेरस (इस बार 11 नवंबर, रविवार) के प्रदोषकाल में यमराज के निमित्त दीप और नैवेद्य समर्पित करने पर अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। यमदीप दान प्रदोषकाल यानी शाम के समय करना चाहिए। इसकी विधि इस प्रकार है-

विधि

मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे स्वच्छ जल से धो लें। इसके बाद साफ रुई लेकर दो लंबी बत्तियां बना लें। उन्हें दीपक में एक-दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुहं दिखाई दें। अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें।

इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, चावल एवं फूल से पूजन करें। उसके बाद घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी सी खील अथवा गेहूं की एक ढेरी बनाएं और नीचे लिखे मंत्र को बोलते हुए दक्षिण दिशा की ओर मुख करके यह दीपक उस पर रख दें-


मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह।
त्रयोदश्यां दीपदनात् सूर्यज: प्रीयतामिति।।

इसके बाद हाथ में फूल लेकर नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए यमदेव को दक्षिण दिशा में नमस्कार करें-
ऊँ यमदेवाय नम:। नमस्कारं समर्पयामि।।

अब यह फूल दीपक के समीप छोड़ दें और हाथ में एक बताशा लें तथा नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए उसे भी दीपक के पास रख दें-

ऊँ यमदेवाय नम:। नैवेद्यं निवेदयामि।।

अब हाथ में थोड़ा सा जल लेकर आचमन के निमित्त नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए दीपक के समीप छोड़ दें-
ऊँ यमदेवाय नम:। आचमनार्थे जलं समर्पयामि।

अब पुन: यमदेव को ऊँ यमदेवाय नम: कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें।
इस तरह दीपदान करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।


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