16 October 2012

थाइराइड ग्रंथि की समस्या - समाधान



थाइराइड ग्रंथि की समस्या आज आमतौर पर ज्यादातर लोगों में देखी जा सकती है। थाइराइड की समस्या आदमी की तुलना में महिलाओं में ज्यादा होती है। थाइराइड एक साइलेंट किलर है जो सामान्य स्वास्‍थ्‍य समस्यायओं के रूप में शरीर में शुरू होती है और बाद में घातक हो जाती है। थाइराइड से बचने के लिए विटामिन, प्रोटीनयुक्त और फाइबरयुक्त आहार का ज्यादा मात्रा में सेवन करना चाहिए। थाइराइड में ज्यादा आयोडीन वाले खाद्य पदार्थ खाने चाहिए। मछली और समुद्री मछली थाइराइड के मरीज के लिए बहुत ही फायदेमंद होती है। थाइराइड के मरीज को डॉक्टर से सलाह लेकर ही अपना डाइट प्लान बनाना चाहिए। हम आपको कुछ आहार के बारे में जानकारी दे रहे हैं जो कि थाइराइड के मरीज के लिए फायदेमंद हो सकता है।


स्व्स्थ खान-पान 

अपना कर थाइराइड के खतरे को कम किया जा सकता है। इसलिए अपने डाइट प्लान में थाइराइड के लिए उपयोगी आहार को शामिल कीजिए।


थाइराइड में फायदेमंद आहार - 

मछली – 


थाइराइड के मरीज को आयोडीनयुक्त भोजन करना चाहिए। मछली में ज्यादा मात्रा में आयोडीन होता है। आम मछलियों की तुलना में समुद्री मछलियों में आयोडीन होता है। इसलिए समुद्री मछली जैसे, सेलफिश और झींगा खाना चाहिए जिसमें ज्यादा मात्रा में ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है। अल्बकोर ट्यूना, सामन, मैकेरल, सार्डिन, हलिबेट, हेरिंग और फ़्लाउंडर, ओमेगा -3 फैटी एसिड की शीर्ष आहार स्रोत हैं।

साबुत अनाज - 

आटा या पिसे हुए अनाज की तुलना में अनाज में ज्यादा मात्रा में विटामिन, मिनरल, प्रोटीन और फाइबर होता है। अनाज में विटामिन-बी और अन्य पोषक तत्व मौजूद होते हैं जिसे खाने से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढती है। पुराना भूरा चावल, जंगली चावल, जई, जौ, ब्रेड, पास्ता और पापकॉर्न खाना चाहिए।


दूध और दही - 

थाइराइड के मरीज को दूध और उससे बने खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। दूध और दही में पर्याप्त मात्रा में विटामिन, मिनरल्स, कैल्शियम और अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं। दही में पाऐ जाने वाले स्वस्थ बैक्टीरिया (प्रोबायोटिक्स) शरीर के इम्‍यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं। प्रोबायोटिक्स थाइराइड रोगियों में गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल को स्‍वस्‍थ बनाए रखने में मदद करता है।

फल और सब्जियां -

फल और सब्जिया एंटीऑक्सीडेंट्स का प्राथमिक स्रोत होती हैं जो कि शरीर को रोगों से लडने में सहायता प्रदान करते हैं। सब्जियों में पाया जाने वाला फाइबर पाचन क्रिया को मजबूत करता है जिससे खाना अच्छे से पचता है। हरी और पत्तेदार सब्जियां थाइराइड ग्रंथि की क्रियाओं के लिए अच्छी होती हैं। हाइपरथाइराइजिड्म हड्डियों को पतला और कमजोर बनाता है इसलिए हरी और पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए जिसमें विटामिन-डी और कैल्शियम होता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। लाल और हरी मिर्च, टमाटर और ब्लूबेरी खाने में शरीर के अंदर ज्यादा मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट जाता है। इसलिए थाइराइड के रोगी को फल और हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए।


आयोडीन - 

थाइराइड के मरीज को आयोडीनयुक्त भोजन करना चाहिए। आयो‍डीन थाइराइड ग्रंथि के दुष्प्रभाव को कम करता है। थाइराइड के मरीज को ज्या‍दा आयोडीनयुक्त नमक नहीं खाना चाहिए क्योंकि उसमें सूगर की मात्रा भी मौजूद होती है जिससे थाइराइड बढता है।
थाइराइड को साइलेंट किलर भी कहा जाता है। थाइराइड के मरीज को सामान्य स्वास्‍थ्‍य समस्याएं होती हैं जिसे भागदौड की जिंदगी में आदमी असानी से उपेक्षा कर देता है जो कि घातक हो सकता है। लेकिन स्वस्थ खान-पान अपनाकर थाइराइड के खतरे को कम किया जा सकता है।


आयोडीन क्या है?


आयोडीन आपके बढ़ते शिशु के दिमाग के विकास और थायराइड प्रक्रिया के लिए अनिवार्य है। यह एक माइक्रोपोशक तत्व है जिसकी हमारे शरीर को विकास एवं जीने के लिए बहुत थोड़ी मात्रा में आवश्यकता होती है। थायराइड ग्रंथि गर्दन के सामने है और यह उन हार्मोन का उत्पादन करता है जो शरीर की चयापचय का नियंत्रण करते हैं

आयोडीन हमारे शरीर के तापमान को भी विनियमित करता है, विकास में सहायक है और भ्रूण के पोशक तत्वों का एक अनिवार्य घटक है।


आपके शरीर को कितने आयोडीन की जरूरत है?

एक व्यक्ति को जीवनभर में एक छोटे चम्मच से भी कम आयोडीन की आवश्यकता पड़ती है। चूंकि आयोडीन शरीर में जमा नहीं रह सकता इसे दैनिक आधार पर लेना पड़ता है। रिसर्च से पता चला है कि महिलाओं को गर्भावस्था एवं स्तनपान के दौरान अपने आहार में पर्याप्त आयोडीन नहीं मिलता।

डब्ल्यूएचओ(WHO)की हिदायतों के अनुसार ली जाने वाली आयोडीन की मात्रा निम्न है:

गर्भवती महिलाओं के लिए 200-220 माइक्रोग्राम प्रतिदिन
स्तनपान कराती महिलाओं के लिए 250-290 माइक्रोग्राम
1 वर्ष से छोटे शिशुओं के लिए 50-90 माइक्रोग्राम प्रतिदिन
1-11 वर्ष के बच्चों के लिए 90-120 माइक्रोग्राम प्रतिदिन, और
वयस्कों तथा किशोरों के लिए 150 माइक्रोग्राम प्रतिदिन


आयोडीन की कमी से क्या कुप्रभाव हो सकते हैं?


आयोडीन की कमी से आप मानसिक तथा शारीरिक तौर पर प्रभावित हो सकते हैं। इसके आम लक्षण हैं त्वचा का सूखापन, नाखूनों और बालों का टूटना, कब्ज़ और भारी और कर्कश आवाज़ । इनमें से कुछ लक्षण गर्भावस्था में आम पाए जाते हैं इसलिए इस बारे में डाक्टर से सलाह लेना सुरक्षित है।

आयोडीन की कमी से वज़न बढ़ना, रक्त में कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ना और ठंड बर्दाश्त न होना आदि लक्षण होते हैं। वस्तुत: आयोडीन की कमी से मस्तिश्क का धीमा होना और दिमाग को क्षति आदि हो सकते हैं जिन्हें समय से रोका जा सकता है।

आयोडीन की लगातार कमी से चेहरा फूला हुआ, गले में सूजन (गले के अगले हिस्से में थाइराइड ग्रंथि में सूजन) थाइराइड की कमी (जब थाइराइड हार्मोन का बनना सामान्य से कम हो जाए) और मस्तिश्क की कार्यप्रणाली में बाधा आती है।

गर्भवती महिलाओं में आयोडीन की कमी से गर्भपात, नवज़ात शिशुओं का वज़न कम होना,शिशु का मृत पैदा होना और जन्म लेने के बाद शिशु की मृत्यु होना आदि लक्षण होते हैं। एक शिशु में आयोडीन की कमी से उसमें बौद्धिक और विकास समस्यायें जैसे कि मस्तिश्क का धीमा चलना, शरीर का विकास कम होना, बौनापन, देर से यौवन आना, सुनने और बोलने की समस्यायें तथा समझ में कमी आदि होती हैं।


आयोडीन के अच्छे प्राकृतिक स्रोत क्या हैं?

आयोडीन मुख्यत: मिट्टी और पानी में पाया जाता है। बहरहाल, पेड़ काटने, बाढ़ आने, विक्षालन तथा भारी वर्षा के कारण मिट्टी में मौजूद आयोडीन घुल कर बह जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों में आयोडीन की मात्रा सबसे कम होती है जबकि तटीय क्षेत्रों में इसकी मात्रा बेहतर होती है।

आयोडीन के सर्वोत्तम प्राकृतिक स्रोत हैं अनाज, दालें एवं ताजे खाद्य पदार्थ। दूध, मछली और खाने योग्य समुद्री जीव, मॉस तथा अंडों में भी कुछ मात्रा में आयोडीन होता है।

यह जानना महत्वपूर्ण है कि लोगों के विष्वास के विपरीत समुद्री नमक में आयोडीन की पर्याप्त मात्रा नहीं होती। अत: विकल्प के तौर पर समुद्री नमक का इस्तेमाल न करें क्योंकि इसके प्रत्येक ग्राम में केवल 2 माइक्रोग्राम आयोडीन होता है।


क्या आयोडीन युक्त नमक इसका सर्वोत्तम उपाय है?


आयोडीन युक्त नमक अपने आहार में आयोडीन शामिल करने का सबसे बेहतर तरीका है। एक औसत भारतीय प्रतिदिन लगभग 10-15 ग्रा. नमक का सेवन करता है। अपने दैनिक भोजन में आयोडीन युक्त नमक का इस्तेमाल करने से आपकी आयोडीन की दैनिक मात्रा पूरी हो जाती है।

नमक में आयोडीन नष्ट नहीं होता यदि इसे उचित ढंग से रखा जाए। बहरहाल, लम्बे समय तक सूर्य की रोशनी तथा नमी पड़ने से नमक में मौजूद आयोडीन नष्ट हो सकता है। आपको आयोडीन युक्त नमक शीशे या प्लास्टिक के बंद कंटेनरों में रखना चाहिए और उस पर लिखी निर्माण की तारीख हमेशा देखें। आयोडीन युक्त नमक का इस्तेमाल पैकिंग की तारीख से 12 महीने के अंदर कर लेना चाहिए।

बहरहाल, यदि आपको उच्च रक्तचाप तथा कोई अन्य स्वास्थ्य समस्या है जिसके कारण आप अपने आहार में नमक का इस्तेमाल कर पाने में असमर्थ हैं तो इसके विकल्प के लिए अपनी डाक्टर से सलाह करें।


आयोडीन की कमी का पता कैसा चलता है?


चूंकि सेवित आयोडीन की 90 प्रतिशत मात्रा मूत्र के जरिए निकल जाती है, अत: आयोडीन की कमी का पता लगाने का सर्वोत्तम तरीका 24 घंटे मूत्र कलेक्षन टेस्ट या अचानक किया जाने वाला आयोडीन-से -क्रियेटिनाइन मूत्र परीक्षण है। आपके शरीर में टी एस एच(TSH) स्तर की जांच के लिए एक थाइराइड प्रक्रिया परीक्षण भी किया जाता है।


आयोडीन की कमी का उपचार कैसा किया जाता है?


यदि आयोडीन की कमी का पता चल जाए, आपकी डाक्टर इसके संबंध में की जाने वाली कार्रवाई की हिदायत देंगी और इस संबंध में आपके स्वास्थ्य पर नज़र रखी जाएगी। गर्भवती तथा स्तनपान कराती महिलाओं को इसके सप्लीमेंट लेने चाहिएं ताकि मां तथा शिशु दोनों को आयोडीन की पर्याप्त मात्रा मिले। अपनी डाक्टर के निर्देश का अनुपालन करना आवश्यक है क्योंकि इसकी दवा की मात्रा प्रत्येक व्यक्ति के अनुसार भिन्न हो सकती है।
बहरहाल, आयोडीन के सप्लीमेंट लेने की सलाह सभी को नहीं दी जाती, विशेषकर उन लोगों को जिन्हें थाइराइड की समस्या हो। अत: आयोडीन के सप्लीमेंट लेने से पहले अपनी डाक्टर से सलाह जरूर करें।

थाइराइड उपचार के तरीके -


रेडियोएक्टिव आयोडीन ट्रीटमेंट -



थाइराइड के मरीज को रेडियोएक्टिव आयोडीन दवाई गोली या लिक्विड के द्वारा दिया जाता है। इस उपचार के द्वारा थाइराइड की ज्यादा सक्रिय ग्रंथि को काटकर अलग किया जाता है। इसमें जो आयोडीन दिया जाता है वह आयोडीन स्कैन से अलग होता है। रेडियोएक्टिव आयोडीन को लगातार आयोडनी स्कैन चेकअप के बाद दिया जाता है और आयोडीन हाइपरथाइराइजिड्म के पहचान की पुष्टि करता है। रेडियोएक्टिव आयोडीन थाइराइड की कोशिकाओं को समाप्त करते हैं। इस थेरेपी से शरीर को कोई भी साइड-इफेक्ट नहीं होता है। रेडियोएक्टिव आयोडीन 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में भी सुरक्षित तरीके से प्रयोग किया जा सकता है। प्रेग्नेंसी में रेडियोएक्टिव आयोडीन ट्रीटमेंट का इलाज नहीं किया जाता है इससे मां और बच्चे को नुकसान हो सकता है। दिल के मरीजों के लिए यह उपचार बहुत ही सुरक्षित होता है। इस थेरेपी से 8-12 महीने में थाइराइड की समस्या समाप्त हो जाती है। सामान्यतया 80 प्रतिशत तक थाइराइड के मरीजों को रेडियोएक्टिव आयोडीन के एक ही खुराक से उपचार हो जाता है। लेकिन थाइराइड की समस्या गंभीर होने पर इसके इलाज में कम से कम 6 महीने तक लग सकते हैं।



सर्जरी -

सर्जरी के द्वारा आंशिक रूप से थाइराइड ग्रंथि को निकाल दिया जाता है, जो कि बहुत सामान्य तरीका है। थाइराइड के मरीजों में सर्जरी के द्वारा उसके शरीर से थाइराइड के ऊतकों को निकाला जाता है जो कि ज्यादा मात्रा में थाइराइड के हार्मोन पैदा करते हैं। लेकिन सर्जरी से आसपास के ऊतकों पर भी प्रभाव पडता है। इसके अलावा मुंह की नसें और चार अन्य। ग्रंथियां (जिनको पैराथाइराइड ग्रंथि कहते हैं) भी प्रभावित होती हैं जो कि शरीर में कैल्शियम स्तर को नियमित करती हैं। थाइराइड की सर्जरी उन मरीजों को करानी चाहिए जिनको खाना निगलने में दिक्कत हो रही हो और सांस लेने में दिक्कत हो। प्रग्नेंट महिला और बच्चे जो कि थाइराइड की दवाइयों को बर्दास्त नहीं कर सकते हैं उनके लिए सर्जरी उपयोगी है।



एंटीथाइराइड गोलियां -

थाइराइड में सामान्य समस्याएं जैसे बुखार, गले में ख्रास जैसी समस्याएं होती हैं। यह छोटी समस्याएं थाइराड की वजह से हो सकती हैं इसलिए दवाईयां लेने से पहले जांच करानी चाहिए। थाइराइड के मरीज को चिकित्सक से सलाह लेकर एंटीथाइराइड की गोलियां खानी चाहिए। बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीथाइराइड की गोलियां आपके लिए हानिकारक हो सकती हैं।


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