05 October 2012

रामचरित मानस की दुर्लभ प्राचीन पांडुलिपि बरामद


वाराणसी :- गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस की चोरी गई एक प्राचीन हस्तलिखित पाडुलिपि को पुलिस ने बरामद कर लिया है। यह पाडुलिपि सात माह पूर्व भेलूपुर थाना क्षेत्र के तुलसी घाट स्थित हनुमान मंदिर से चोरी कर ली गई थी। भेलूपुर पुलिस ने शनिवार सुबह दो चोरों को गिरफ्तार कर लिया। इनमें एक कबाड़ी व उसका साथी शामिल है। इस चोरी का मुख्य अभियुक्त एक अन्य के साथ मौके से फरार हो गया। एसएसपी ने शनिवार को पत्रकारवार्ता कर उक्त जानकारी दी। उन्होंने सभी अभियुक्तों पर गैंगस्टर के तहत मामला दर्ज करने का निर्देश दिया है। डीआईजी ने इस कामयाबी के लिए भेलूपुर पुलिस को दस हजार का इनाम देने की घोषणा की है।

तुलसीघाट स्थित संकट मोचन मंदिर के महंत पं. वीरभद्र मिश्र के निवास परिसर में स्थित हनुमान मंदिर से 22 दिसंबर 2011 को दिनदहाड़े मंदिर के गेट की कुंडी निकाल कर रामचरित मानस की करीब चार सौ वर्ष पुरानी हस्तलिखित पाडुलिपि को चुरा लिया गया था। चोर मंदिर से हनुमान जी का चादी का मुकुट, चादी की गदा, चादी की हनुमानजी की मूर्ति,
पीतल के लड्डू गोपाल आदि भी चुरा ले गए थे। इस पाडुलिपि को गोस्वामी तुलसीदास के महाप्रयाण के 24 वर्ष बाद उनके एक शिष्य ने भोजपत्र पर लिखा था। इसको प्रत्येक वर्ष रामलीला के दौरान निकाला जाता था और उसमें सेपाच दोहा पढ़कर वापस रख दिया जाता था।

पाडुलिपि चोरी ने तत्कालीन पुलिस अधिकारियों का जीना हराम कर दिया था। कई संगठनों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था तो मंहत बालकदास आमरण अनशन पर बैठ गए थे। इन सबके बीच पुलिस ने मंदिर के तीन पुजारियों पर शक जताते हुए उनको गुजरात भेज कर सस्पेक्ट डिटेक्ट सिस्टम (एसडीएस) से गुजारा था।

मामूली चोरों ने की थी चोरी -

एसएसपी बी डी पाल्सन ने बताया कि इस चोरी के पीछे प्राचीन वस्तुओं की तस्करी करने वालों का हाथ माना जा रहा था। ऐसे तस्करों के पीछे एसटीएफ से लेकर तमाम लोग लगे हुए थे और कई राज्यों में इसकी
खोजबीन चल रही थी पर चोरी मामूली चोरों ने की थी। थाना कोतवाली के मोहल्ला रामघाट निवासी सत्यनारायण शर्मा के लड़के बृजमोहन ने अपने तीन अन्य साथियों के साथ मिल कर घटना को अंजाम दिया था। हरिश्चन्द्र पीजी कालेज से बतौर व्यक्तिगत अभ्यर्थी एमए में पढ़ रहे बृजमोहन के पिता चौक में साड़ी की दुकान चलाते हैं। बृजमोहन ने इससे पहले एक पुरानी किताब को 21 हजार में बेचा था। इस बीच हैदराबाद से कुछ लोग वाराणसी में फिल्म बनाने आए थे। इन सभी ने उक्त पाडुलिपि की फिल्म बनाई थी। इसकी जानकारी मिलने पर बृजमोहन को लगा कि प्राचीन पाडुलिपि के अच्छे पैसे मिल जाएंगे। उसने साथियों के साथ मिलकर इसे चुरा लिया। इस पाडुलिपि को एक सूटकेस में रखा गया था। थोड़े थोड़े दिन पर इसे दूसरे स्थान पर रख दिया जाता था।

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