28 June 2013

ऊंऊंऊं भगवान शिव की पूजा और पूजा विधि ऊंऊंऊं





भगवान शिव की पूजा और पूजा विधि:
भगवान शिव ने भगवती के आग्रह पर अपने लिए सोने की लंका का निर्माण किया था । गृहप्रवेश से पूर्वपूजन के लिए उन्होने अपने असुर शिष्य व प्रकाण्ड विद्वान रावण कोआमंत्रित किया था । दक्षिणा के समय रावण ने वह लंका ही दक्षिणा में मांग ली और भगवान शिव ने सहजता से लंका रावण को दान में दे दी तथा वापस कैलाश लौट आए । ऐसी सहजता के कारण ही वे ÷भोलेनाथ' कहलाते हैं । ऐसे भोले भंडारी की कृपा प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होने केलिए शिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण पर्व है।




ॐ ओं जों सः ओं भूर्भुवः स्वाहा |
ॐ त्रियम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात्.|
हों ओं जू सः ओं भूर्भुवः स्वाहा | 

भगवान शिव का स्वरुप अन्यदेवी देवताओं से बिल्कुल अलग है। जहां अन्य देवी-देवताओं को वस्त्रालंकारों से सुसज्जित और सिंहासन पर विराजमान माना जाता है,वहां ठीक इसके विपरीत शिव पूर्ण दिगंबर हैं, अलंकारों के रुप में सर्प धारण करते हैं और श्मशान भूमि पर सहज भाव से अवस्थित हैं। उनकी मुद्रा में चिंतन है, तो निर्विकार भाव भी है! आनंद भी है और लास्य भी। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। यही नही वे संगीत केआदि सृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वास्तव में भगवान शिव देवताओं में सबसे अद्भुत देवता हैं । वे देवों के भी देव होने के कारण÷महादेव' हैं तो, काल अर्थात समय से परे होने के कारण ÷महाकाल' भी हैं । वे देवताओं के गुरू हैं तो, दानवों के भी गुरू हैं । देवताओं में प्रथमाराध्य, विनों के कारक वनिवारण कर्ता, भगवान गणपति के पिता हैं तो, जगद्जननी मां जगदम्बा के पति भी हैं ।वे कामदेव को भस्म करने वाले हैं तो, ÷कामेश्वर' भी हैं । तंत्र साधनाओं के जनक हैं तो संगीत के आदिगुरू भी हैं । उनका स्वरुप इतना विस्तृत है कि उसके वर्णन का सामर्थ्य शब्दों में भी नही है।सिर्फ इतना कहकर ऋषि भी मौन हो जाते हैं किः- 


असित गिरिसमम स्याद कज्जलम सिंधु पात्रे, सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी ।

लिखति यदि गृहीत्वा शारदासर्वकालम, तदपि तव गुणानाम ईश पारम न याति॥


अर्थात यदि समस्त पर्वतों को, समस्त समुद्रों के जल में पीस कर उसकी स्याही बनाइ जाये, और संपूर्ण वनों के वृक्षों को काटकर उसको कलम या पेन बनाया जाये और स्वयं साक्षात, विद्या की अधिष्ठात्री, देवी सरस्वती उनके गुणों को लिखने के लिये अनंत काल तक बैठी रहें तो भी उनके गुणों का वर्णन कर पाना संभव नही होगा। वह समस्त लेखनी घिस जायेगी! पूरी स्याही सूख जायेगी मगर उनका गुण वर्णन समाप्त नही होगा। 




ऐसे भगवान शिव का पूजन अर्चन करना मानव जीवन का सौभाग्य है ।
भगवान शिव के पूजन की अनेकानेक विधियां हैं। इनमें से प्रत्येक अपने आप में पूर्ण है और आप अपनी इच्छानुसार किसी भी विधि से पूजन या साधना कर सकते हैं। भगवान शिव क्षिप्र प्रसादी देवता हैं,अर्थात सहजता से वे प्रसन्न हो जाते हैं और अभीप्सितकामना की पूर्ति कर देते हैं। 

भगवान शिव के पूजन की कुछ सहज विधियां प्रस्तुत कररहा हूं। इन विधियों से प्रत्येक आयु, लिंग, धर्म या जाति का व्यक्ति पूजन कर सकता हैऔर भगवान शिव की यथा सामर्थ्य कृपा भी प्राप्त कर सकता है।



भगवान शिव पंचाक्षरी मंत्रः-

॥ ऊं नमः शिवाय ॥

यह भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र है। इसमंत्र का जाप आप चलते फिरते भी कर सकते हैं। अनुष्ठान के रूप में इसका जाप ग्यारहलाख मंत्रों का किया जाता है । विविधकामनाओं के लिये इस मंत्र का जाप किया जाता है।


बीजमंत्र संपुटित महामृत्युंजयशिव मंत्रः-



॥ ॐ हौं ॐ जूं ॐ सः ॐ भूर्भुवः ॐ स्वः ॐ त्रयंबकंयजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम, उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ ॐ स्वः ॐ भूर्भुवः ॐ सः ॐ जूं ॐ हौं ॐ ॥

इस मंत्र का अर्थ है : 

हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं… उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए… जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं…

भगवान शिव का एक अन्य नाम महामृत्युंजय भी है।जिसका अर्थ है, ऐसा देवता जो मृत्यु पर विजय प्राप्त कर चुका हो। यह मंत्र रोग और अकाल मृत्यु के निवारण के लिये सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसका जाप यदि रोगी स्वयं करे तो सर्वश्रेष्ठ होता है। यदि रोगी जप करने की सामर्थ्य से हीन हो तो, परिवार का कोई सदस्य या फिर कोई ब्राह्‌मण रोगी के नाम से मंत्र जाप कर सकता है। इसके लिये संकल्प इस प्रकार लें, ÷÷मैं (अपनानाम) महामृत्युंजय मंत्र का जाप, (रोगी का नाम) के रोग निवारण के निमित्त कर रहा हॅूं,भगवान महामृत्युंजय उसे पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें''। इस मंत्र के जाप के लिये सफेद वस्त्र तथा आसन का प्रयोग ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है।रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें।


शिवलिंग की महिमा

भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है। इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है, इसके बारे में कहा गया है कि,

मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः, मणेः कोटि गुणं बाणो,

बाणात्कोटि गुणं रसः रसात्परतरं लिंगं न भूतो न भविष्यति ॥




अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिव लिंगके पूजन से, स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से, मणि से करोड गुणा ज्यादाफल बाण लिंग से तथा बाण लिंग से करोड गुणा ज्यादा फल रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो बना है और न ही बन सकता है।

शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होनेवाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी अत्यंतलाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करनेवाले माने गये हैं। यदि आपके पासशिवलिंग न हो तो अपने बांये हाथ केअंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजनकर सकते हैं । शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होतातब तक शिवकृपा नही मिल सकती।

शिवलिंग पर अभिषेक या धारा

भगवान शिव अत्यंत ही सहजता से अपने भक्तों की मनोकामना की पूर्ति करने के लिए तत्पर रहते है। भक्तों के कष्टों का निवारण करने में वे अद्वितीय हैं। समुद्र मंथन के समय सारे के सारे देवता अमृत के आकांक्षी थे लेकिन भगवान शिव के हिस्से मेंभयंकर हलाहल विष आया। उन्होने बडी सहजता से सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस विष को अपने कण्ठ में धारण किया तथा ÷नीलकण्ठ' कहलाए। भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय मानी जाने वाली क्रिया है ÷अभिषेक'। अभिषेक का शाब्दिक तात्पर्य होता है श्रृंगार करना तथा शिव पूजन के संदर्भ में इसका तात्पर्य होता है किसी पदार्थ से शिवलिंग को पूर्णतः आच्ठादित कर देना। समुद्र मंथन के समय निकला विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर का दाह बढ गया। उस दाह के शमन के लिए शिवलिंगपर जल चढाने की परंपरा प्रारंभ हुयी। जो आज भी चली आ रही है । इससे प्रसन्न हो कर वे अपने भक्तों का हित करते हैं इसलिए शिवलिंग पर विविध पदार्थों का अभिषेक किया जाता है।

शिव पूजन में सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति शिवलिंग पर जल या दूध चढाता है । शिवलिंग पर इस प्रकार द्रवों का अभिषेक ÷धारा' कहलाता है । जल तथा दूध की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है ।

पंचामृतेन वा गंगोदकेन वा अभावे गोक्षीर युक्त कूपोदकेन च कारयेत
अर्थात पंचामृत से या फिर गंगा जल से भगवान शिव को धारा का अर्पण किया जाना चाहिये इन दोनों के अभाव में गाय के दूध को कूंए के जल के साथ मिश्रित कर के लिंगका अभिषेक करना चाहिये ।

हमारे शास्त्रों तथा पौराणिक ग्रंथों में प्रत्येक पूजन क्रिया को एक विशिष्ठ मंत्र के साथ करने की व्यवस्था है, इससे पूजन का महत्व कई गुना बढ जाता है । शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के लिए जिस मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है वह हैः-


1 । ऊं हृौं हृीं जूं सः पशुपतये नमः ।


२ । ऊं नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय, च मयस्कराय च नमः शिवाय चशिवतराय च।

इन मंत्रों का सौ बार जाप करके जल चढाना शतधारा तथा एक हजार बार जलचढाना सहस्रधारा कहलाता है । जलधारा चढाने के लिए विविध मंत्रों का प्रयोग किया जासकता है । इसके अलावा आप चाहें तो भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का प्रयोग भी करसकते हैं। पंचाक्षरी मंत्र का तात्पर्य है ÷ 


ऊं नमः शिवाय ' मंत्र ।


विविध कार्यों के लिए विविध सामग्रियों या द्रव्यों की धाराओं का शिवलिंग परअर्पण किया जाता है । तंत्र में सकाम अर्थात किसी कामना की पूर्ति की इच्ठा के साथपूजन के लिए विशेष सामग्रियों का उपयोग करने का प्रावधान रखा गया है । इनमें सेकुछ का वर्णन आगे प्रस्तुत हैः-

सहस्रधाराः-

जल की सहस्रधारा सर्वसुख प्रदायक होती है ।
घी की सहस्रधारा से वंश का विस्तार होता है ।
दूध की सहस्रधारा गृहकलह की शांति के लिए देना चाहिए ।
दूध में शक्कर मिलाकर सहस्रधारा देने से बुद्धि का विकास होता है ।
गंगाजल की सहस्रधारा को पुत्रप्रदायक माना गया है ।
सरसों के तेल की सहस्रधारा से शत्रु का विनाश होता है ।
सुगंधित द्रव्यों यथा इत्र, सुगंधित तेल की सहस्रधारा से विविध भोगों की प्राप्ति होती है ।
इसके अलावा कइ अन्य पदार्थ भी शिवलिंग पर चढाये जाते हैं, जिनमें से 
कुछ के विषयमें निम्नानुसार मान्यतायें हैं:-

सहस्राभिषेक

एक हजार कनेर के पुष्प चढाने से रोगमुक्ति होती है ।
एक हजार धतूरे के पुष्प चढाने से पुत्रप्रदायक माना गया है ।
एक हजार आक या मदार के पुष्प चढाने से प्रताप या प्रसिद्धि बढती है ।
एक हजार चमेली के पुष्प चढाने से वाहन सुख प्राप्त होता है ।
एक हजार अलसी के पुष्प चढाने से विष्णुभक्ति व विष्णुकृपा प्राप्त होती है ।
एक हजार जूही के पुष्प चढाने से समृद्धि प्राप्त होती है ।
एक हजार सरसों के फूल चढाने से शत्रु की पराजय होती है ।

लक्षाभिषेक

एक लाख बेलपत्र चढाने से कुबेरवत संपत्ति मिलती है ।
एक लाख कमलपुष्प चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है ।
एक लाख आक या मदार के पत्ते चढाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है ।

एक लाख अक्षत या बिना टूटे चावल चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है ।

एक लाख उडद के दाने चढाने से स्वास्थ्य लाभ होता है ।
एक लाख दूब चढाने से आयुवृद्धि होती है ।
एक लाख तुलसीदल चढाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है ।
एक लाख पीले सरसों के दाने चढाने से शत्रु का विनाश होता है ।

बेलपत्र

शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के साथ साथ बेलपत्र चढाने का भी विशेष महत्व है।बेलपत्र तीन-तीन के समूह में लगते हैं। इन्हे एक साथ ही चढाया जाता है।अच्छे पत्तों केअभाव में टूटे फूटे पत्र भी ग्रहण योग्य माने गये हैं।इन्हे उलटकर अर्थात चिकने भाग कोलिंग की ओर रखकर चढाया जाता है। इसके लिये जिस श्लोक का प्रयोग किया जाता है वह है,

त्रिदलं त्रिगुणाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुधम।
त्रिजन्म पाप संहारकम एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम॥



उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर बेलपत्र को समर्पित करना चाहिए ।

शिवपूजन में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहियेः-


  • पूजन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर करें।
  • माता पार्वती का पूजन अनिवार्य रुप से करना चाहिये अन्यथा पूजन अधूरा रह जायेगा।
  • रुद्राक्ष की माला हो तो धारण करें।
  • भस्म से तीन आडी लकीरों वाला तिलक लगाकर बैठें।
  • शिवलिंग पर चढाया हुआ प्रसाद ग्रहण नही किया जाता, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य लेसकते हैं।
  • शिवमंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
  • केवडा तथा चम्पा के फूल न चढायें।
  • पूजन काल में सात्विक आहार विचार तथा व्यवहार रखें।




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