वर्तमान युग में हनुमान साधना तुरंत फल देती है। इसी कारण ये जन-जन के देव माने जाते हैं। इनकी पूजा-अर्चना अति सरल है, इनके मंदिर जगह-जगह स्थित हैं अतः भक्तों को पहुंचने में कठिनाई भी नहीं आती है। मानव जीवन का सबसे बड़ा दुख भय'' है और जो साधक श्री हनुमान जी का नाम स्मरण कर लेता है वह भय से मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
हनुमान साधना के कुछ नियम यहां उद्धृत हैं। जिनका पालन करना अति आवश्यक है :
हनुमान साधना में शुद्धता एवं पवित्रता अनिवार्य है। प्रसाद शुद्ध घी का बना होना चाहिए।
हनुमान जी को तिल के तेल में मिल हुए सिंदूर का लेपन करना चाहिए।
हनुमान जी को केसर के साथ घिसा लाल चंदन लगाना चाहिए।
पुष्पों में लाल, पीले बड़े फूल अर्पित करने चाहिए। कमल, गेंदे, सूर्यमुखी के फूल अर्पित करने पर हनुमान जी प्रसन्न होते हैं।
नैवेद्य में प्रातः पूजन में गुड़, नारियल का गोला और लडू, दोपहर में गुड़, घी और गेहूं की रोटी का चूरमा अथवा मोटा रोट अर्पित करना चाहिए। रात्रि में आम, अमरूद, केला आदि फलों का प्रसाद अर्पित करें।
साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन अति अनिवार्य है।
जो नैवेद्य हनुमान जी को अर्पित किया जाता है उसे साधक को ग्रहण करना चाहिए।
मंत्र जप बोलकर किए जा सकते हैं। हनुमान जी की मूर्ति के समक्ष उनके नेत्रों की ओर देखते हुए मंत्रों के जप करें।
साधना में दो प्रकार की मालाओं का प्रयोग किया जाता है। सात्विक कार्य से संबंधित साधना में रुद्राक्ष माला तथा तामसी एवं पराक्रमी कार्यों के लिए मूंगे की माला।
साधना पूर्ण आस्था, श्रद्धा और सेवा भाव से की जानी चाहिए।
मंगलवार हनुमान जी का दिन है। इस दिन अनुष्ठान संपन्न करना चाहिए। इसके अतिरिक्त शनिवार को भी हनुमान पूजा का विधान है।
हनुमान साधना से ग्रहों का अशुभत्व पूर्ण रूप से शांत हो जाता है। हनुमान जी और सूर्यदेव एक दूसरे के स्वरूप हैं, इनकी परस्पर मैत्री अति प्रबल मानी गई है। इसलिए हनुमान साधना करने वाले साधकों में सूर्य तत्व अर्थात आत्मविश्वास, ओज, तेजस्विता आदि विशेष रूप से आ जाते हैं। यह तेज ही साधकों को सामान्य व्यक्तियों से अलग करता है।
हनुमान जी की साधना में जो ध्यान किया जाता है उसका विशेष महत्व है। हनुमान जी के जिस विग्रह स्वरूप का ध्यान करें वैसी ही मूर्ति अपने मानस में स्थिर करें और इस तरह का अभ्यास करें कि नेत्र बंद कर लेने पर भी वही स्वरूप नजर आता रहे।
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