30 November 2012

** बुद्ध का भक्त **



एक राजा बुद्ध का बड़ा भक्त था। उसने सोचा कि प्रजा को सुखी रखना उसका कर्तव्य है, इसलिए उसने महल के द्वार पर स्वर्ण-मुद्राओं से भरे थाल रखवा दिए और घोषणा करवा दी कि प्रत्येक व्यक्ति दो-दो मुट्ठी मुद्राएं ले जाए। यह सुनकर प्रजा में खुशी की लहर दौड़ गई। सब अपना-अपना काम छोड़कर स्वर्ण-मुद्राएं लेने राजमहल की ओर जाने लगे। लोग महल के द्वार पर आते और दो-दो मुट्ठी स्वर्ण- मुद्राएं लेकर चले जाते।

बुद्ध एक ब्रह्मचारी के रूप में वहां पहुंचे। उन्होंने दो मुट्ठी मुद्राएं उठाईं और चल दिए। कुछ दूर आगे जाने के बाद वह लौट आए। उन्होंने मुद्राएं वहीं पटक दीं। राजा ने इसका कारण पूछा तो बोले- सोचा, शादी कर लूं। पर इतनी मुद्राओं से कैसे काम चलेगा? राजा बोला- दो मुट्ठी और ले लो। बुद्ध ने चार मुट्ठी मुद्राएं उठा लीं और चल दिए। थोड़ी देर बाद वह फिर लौट आए और बोले- शादी करूंगा तो घर भी चाहिए।


राजा बोला- दो मुट्ठी और ले लो। बुद्ध मुद्राएं लेकर गए मगर लौट आए और बोले- बच्चे होंगे, तो उनका भी तो खर्चा होगा। राजा ने कहा- दो मुट्ठी और ले लो। यह सुनकर बुद्ध अपने असली रूप में प्रकट हो गए। राजा ने उन्हें प्रणाम किया। बुद्ध राजा से बोले- हे राजन्, एक बात जान लो। यदि तुम्हारी प्रजा दूसरों के सहारे जीने लगेगी, तो उसका कभी कल्याण नहीं होगा। उसे परिश्रम करके आजीविका पाने का रास्ता दिखाओ, तभी प्रजा सुखी रहेगी और उसका कल्याण होगा। बुद्ध की बात सुनकर राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया।

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"A patriot must always be 
ready to defend his country ."




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