बुद्ध एक ब्रह्मचारी के रूप में वहां पहुंचे। उन्होंने दो मुट्ठी मुद्राएं उठाईं और चल दिए। कुछ दूर आगे जाने के बाद वह लौट आए। उन्होंने मुद्राएं वहीं पटक दीं। राजा ने इसका कारण पूछा तो बोले- सोचा, शादी कर लूं। पर इतनी मुद्राओं से कैसे काम चलेगा? राजा बोला- दो मुट्ठी और ले लो। बुद्ध ने चार मुट्ठी मुद्राएं उठा लीं और चल दिए। थोड़ी देर बाद वह फिर लौट आए और बोले- शादी करूंगा तो घर भी चाहिए।
राजा बोला- दो मुट्ठी और ले लो। बुद्ध मुद्राएं लेकर गए मगर लौट आए और बोले- बच्चे होंगे, तो उनका भी तो खर्चा होगा। राजा ने कहा- दो मुट्ठी और ले लो। यह सुनकर बुद्ध अपने असली रूप में प्रकट हो गए। राजा ने उन्हें प्रणाम किया। बुद्ध राजा से बोले- हे राजन्, एक बात जान लो। यदि तुम्हारी प्रजा दूसरों के सहारे जीने लगेगी, तो उसका कभी कल्याण नहीं होगा। उसे परिश्रम करके आजीविका पाने का रास्ता दिखाओ, तभी प्रजा सुखी रहेगी और उसका कल्याण होगा। बुद्ध की बात सुनकर राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया।
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"A patriot must always be
ready to defend his country ."
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