16 September 2012

=========पाप के अठारह भेद ==========




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18 पाप इस प्रकार है :-
1 :- प्रानिपात - जिव हिंसा
2 :- मृषावाद - झूठ बोलना .

3 :- अदत्तादान - चोरी करना .
4 :- मैथुन - अभ्रमचार .
5 :- परिग्रह - संग्रह
6 :- क्रोध – गुस्सा (Anger)
7 :- मान – घमंड (Pride & Ego)
8 :- माया - छल कपट
9 :- लोभ - लालच
10 :- राग - किसे के प्रति आकर्षण .
11 :- द्वेष - किसी के प्रति वैर भाव .
12 :- कलह - क्लेश करना .
13 :- अभ्याख्यान - कलंक लगाना .
14 :- पैशुन्य - चुगली करना , दुसरो के दोष प्रकट करना .
15 :- पर परिवाद - दुसरो की निंदा करना .
16 :- रात्रि -अरात्रि - बुरे कार्यो में लगे रहना , धर्म में मन नहीं लगाना .
17 :- माया मिर्शवाद - कपट रख कर झूठ बोलना .
18 :- मिथ्यात्व दर्शन शल्य - गलत श्रद्धा रखना .
इन पापो से बचने के लिए , 18 पाप को हम चाहे तो रोक सकते है बस हम में इच्छा शक्ति होनी चाहिए . हमें इन 18 पापो को समजना चाहिए और मन में इनको कम करने का प्रयत्न करना चाहिए , हर चीज का ज्ञान जरुरी है क्योकि वही हमें सही रास्ता दिखता है . पाप कम से कम करने के लिए हमें हर कम विवेक पूर्वक करना चाहिए आधे पाप तो इससे बंद हो जाते है और आधे पाप के लिए हमें मन को सरल बनाना चाहिए ये मुश्किल है पर नामुनकिन नहीं .
जय जिनेन्द्र _/\_







Rajesh Agrawal

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