26 November 2012

****श्री द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग ****



श्री द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है।ये संख्या में १२ है। सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर।हिंदुओं में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।

01- श्री सोमनाथ सौराष्ट्र, (गुजरात) के प्रभास क्षेत्र में विराजमान है। इस प्रसिद्ध मंदिर को अतीत में छह बार ध्वस्त एवं निर्मित किया गया है।


02- श्रीमल्लिकार्जुन आन्ध्र प्रदेश प्रांत के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तटपर श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान हैं। इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं।

03- श्री महाकालेश्वर (मध्यप्रदेश) के मालवा क्षेत्र में क्षिप्रा नदी के तटपर पवित्र उज्जैननगर में विराजमान है। उज्जैन को प्राचीनकाल में अवंतिकापुरी कहते थे।

04- श्रीॐकारेश्वर मालवा क्षेत्र में श्रीॐकारेश्वर स्थान नर्मदा नदी के बीच स्थित द्वीप पर है। उज्जैन सेखण्डवा जाने वाली रेलवे लाइन पर मोरटक्का नामक स्टेशन है, वहां से यह स्थान 10 मील दूर है। यहां ॐकारेश्वर और मामलेश्वर दो पृथक-पृथक लिङ्ग हैं, परन्तु ये एक ही लिङ्ग के दो स्वरूप हैं। श्रीॐकारेश्वर लिंग को स्वयंभू समझा जाता है।

05- श्री केदारनाथ हिमालय के केदार नामक श्रृङ्गपर स्थित हैं। शिखर के पूर्व की ओरअलकनन्दा के तट पर श्री बदरीनाथ अवस्थित हैं और पश्चिम में मन्दाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ हैं। यह स्थान हरिद्वार से 150 मील और ऋषिकेश से 132 मील दूरउत्तरांचल राज्य में है।

06- श्री भीमशङ्कर का स्थान मुंबई से पूर्व और पूना से उत्तर भीमा नदी के किनारे सह्याद्रि पर्वत पर है। यह स्थान नासिक से लगभग 120 मील दूर है। सह्याद्रि पर्वत के एक शिखर का नाम डाकिनी है। शिवपुराण की एक कथा के आधार पर भीमशङ्कर ज्योतिर्लिङ्ग कोअसम के कामरूप जिले में गुवाहाटी के पास ब्रह्मपुर पहाड़ी पर स्थित बतलाया जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि नैनीताल जिले के काशीपुर नामक स्थान में स्थित विशाल शिवमंदिर भीमशंकर का स्थान है।

07- श्री विश्वनाथजी वाराणसी (उत्तर प्रदेश) स्थित काशी के श्री विश्वनाथजी सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में एक हैं। गंगा तट स्थित काशी विश्वनाथ शिवलिंग दर्शन हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र है।

08- श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग महाराष्ट्र प्रांत के नासिक जिले में पंचवटी से 18 मील की दूरी पर ब्रह्मगिरि के निकट गोदावरी के किनारे है। इस स्थान पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गम भी है।

09- शिवपुराण में 'वैद्यनाथं चिताभूमौ' ऐसा पाठ है, इसके अनुसार (झारखंड) राज्य के संथाल परगना क्षेत्र में जसीडीह स्टेशन के पास देवघर (वैद्यनाथधाम) नामक स्थान पर श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग सिद्ध होता है, क्योंकि यही चिताभूमि है। महाराष्ट्र में पासे परभनीनामक जंक्शन है, वहां से परली तक एक ब्रांच लाइन गयी है, इस परली स्टेशन से थोड़ी दूर पर परली ग्राम के निकट श्रीवैद्यनाथ को भी ज्योतिर्लिङ्ग माना जाता है। परंपरा और पौराणिक कथाओं से देवघर स्थित श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग को ही प्रमाणिक मान्यता है।

10- श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग बड़ौदा क्षेत्रांतर्गत गोमती द्वारका से ईशानकोण में बारह-तेरह मील की दूरी पर है। निजाम हैदराबाद राज्य के अन्तर्गत औढ़ा ग्राम में स्थित शिवलिङ्ग को ही कोई-कोई नागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग मानते हैं। कुछ लोगों के मत से अल्मोड़ा से 17 मील उत्तर-पूर्व में यागेश (जागेश्वर) शिवलिङ्ग ही नागेश ज्योतिर्लिङ्ग है।

11- श्रीरामेश्वर तीर्थ तमिलनाडु प्रांत के रामनाड जिले में है। यहाँ लंका विजय के पश्चात भगवान श्रीराम ने अपने अराध्यदेव शंकर की पूजा की थी। ज्योतिर्लिंग को श्रीरामेश्वरया श्रीरामलिंगेश्वर के नाम से जाना जाता है।

12- श्री घुश्मेश्वर (गिरीश्नेश्वर) ज्योतिर्लिंग को घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहते हैं। इनका स्थान महाराष्ट्र प्रांत में दौलताबाद स्टेशन से बारह मील दूर बेरूल गांव के पास है।

श्री द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम्


सौराष्ट्रदेशे विशदे‌உतिरम्ये ज्योतिर्मयं चंद्रकलावतंसम् ।

भक्तप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ १ ॥
श्रीशैलशृंगे विविधप्रसंगे शेषाद्रिशृंगे‌உपि सदा वसंतम् ।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेनं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥ २ ॥
अवंतिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् ।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वंदे महाकालमहासुरेशम् ॥ ३ ॥
कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय ।
सदैव मांधातृपुरे वसंतम् ॐकारमीशं शिवमेकमीडे ॥ ४ ॥
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसं तं गिरिजासमेतम् ।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥ ५ ॥
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि ॥ ६ ॥
श्रीताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः ।
श्रीरामचंद्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥ ७ ॥
याम्ये सदंगे नगरे‌உतिरम्ये विभूषितांगं विविधैश्च भोगैः ।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ८ ॥
सानंदमानंदवने वसंतम् आनंदकंदं हतपापबृंदम् ।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ९ ॥
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसंतं गोदावरितीरपवित्रदेशे ।
यद्दर्शनात् पातकं पाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यंबकमीशमीडे ॥ १० ॥
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमंतं संपूज्यमानं सततं मुनींद्रैः ।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥ ११ ॥
इलापुरे रम्यविशालके‌உस्मिन् समुल्लसंतं च जगद्वरेण्यम् ।
वंदे महोदारतरस्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये ॥ १२ ॥

ज्योतिर्मयद्वादशलिंगकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजो‌உतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ॥


जय महाकाल !!
जय जय श्री राम !!

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