18 September 2012

गुलामी ढ़ोल पीटकर नहीं आती ......................


गुलामी ढ़ोल पीटकर नहीं आती ......................
अगर आप अपने रोजगार धंधो को बचना चाहते है तो अभी से कमर कस लो


तीन महीने पहले बीमारी के बहाने सोनिया गाँधी अपने पूरे परिवार और सम्बन्धियों के साथ अमेरिका मे थी | सोनिया के तथाकथित इलाज के दौरान अस्पताल के पुरे तीन मंजिल और दो पार्किंग बुक किये गए थे | यहाँ तक उस अस्पताल मे जितने भी भारतीय मूल और पाकिस्तानी मूल के कर्मचारी थे उनको भी वहा से हटा दि

या गया था | सोनिया गाँधी से कौन-कौन लोग मिलने आते थे ये बेहद गोपनीय रखा गया | हालाँकि सोनिया के चिकित्सा दौरे को लेकर पहले भी कई सवाल उठते रहे हैं | लेकिन जिस तरह से अचानक केबिनेट ने रिटेल सेक्टर मे 100% FDI की मंजूरी दे दी उसको लेकर कूटनीतिक विश्लेषकों के बीच कई तरह की बातें हो रही हैं | सोनिया के गोपनीय चिकित्सा दौरे को भारतीय खुदरा व्यवसाय में 100% FDI की मंजूरी से जोड़ कर देखा जा रहा है |
#- क्या है रिटेल सेक्टर मे 100% FDI ?
इसका सीधा मतलब है कि अब भारत मे अमेरिका और यूरोप के बड़े बड़े कारपोरेट और किराने के संगठित खिलाडी अपने स्टोर भारत मे अकेले खोल सकते है ..मतलब अब उन्हें किसी भी भारतीय कम्पनी को अपना पार्टनर नहीं बनाना पड़ेगा ..और चूँकि ये दूसरे देशो मे रजिस्टर्ड है इसलिए ये मनमाने ढंग से भारतीयों को लूटने के लिए आज़ाद होंगी और अपने मुनाफे को अपने देश भेजेंगी ..इनके पास बहुत ही पूंजी होगी और ये बहुत ही संगठित तरीके से काम करेंगी .इसलिए ये भारत के छोटे छोटे दुकानदारों को खत्म कर देंगी ..क्योकि हर बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है ..
अम्रेरिका मे वालमार्ट ने आज अमेरिका मे सभी छोटे छोटे “ग्रोसरी स्ट्रोर्स” को खत्म कर दिया ..लेकिन चूँकि अमेरिका अपने नागरिको को एक पूरी तरह से सोशल सिक्योरिटी सिस्टम देता है इसलिए वहाँ स्थिति इतनी भयावह नहीं होती है जितनी दूसरे देशो मे होती है .अमेरिका मे लोगो को शिक्षा , मेडीकल , आदि सरकार मुफ्त मे प्रदान करती है ..और वहा बेरोजगारी भत्ता भी दिया जाता है ..लोगो को सरकार धंधे आदि के लिए मुफ्त मे लोन देती है .. और वहा कोई भी अपने आप को बड़ी आसानी से डिफाल्टर घोषित कर सकता है ..अमेरिका मे डिफाल्टर्स के अधिकारों मे कोई कमी भी नहीं होती .वो चुनाव आदि लड सकता है ..और सबसे बड़ी बात अमेरिका भारत से चार गुना बड़ा है और वहा की जनसंख्या भारत से पांच गुना कम है ..
वालमार्ट जिस भी देश मे अपने स्टोर्स खोला है वहा के पुरे छोटे छोटे दुकानदारों को बर्बाद कर दिया है .. पोलैंड , पुर्तगाल , ग्रीक मे तो वाल्ल्मार्ट के खिलाफ दंगे तक भड़क उठे थे और फिर वहा की सरकारों को वालमार्ट को वहा से बंद करवाना पड़ा ..यहाँ तक चीन मे भी वालमार्ट के बीस स्टोर्स खुले थे लेकिन भरी विरोध के चलते १७ को चीन सरकार ने बंद करवा दिया ..

#- चीन ने वालमार्ट को मंजूरी क्यों दिया था ??

असल मे वालमार्ट चीन का सबसे बड़ा ग्राहक है ..चीन के आर्थिक विकास मे वालमार्ट का बहुत ही अहम योगदान है ..चीन के आर्थिक विकास मे २१% योगदान सिर्फ वालमार्ट का है ..आज वालमार्ट पुरे विश्व मे जो भी सामान बेचती है उसमे से ९९% चीजे चीन मे ही बनती है .चीन सरकार ने कई हज़ार कारखाने सिर्फ वालमार्ट को सप्लाई देने के लिए ही लगाये है इसलिए चीन के उपर कोई फर्क नहीं पड़ता ..फिर भी चीन ने अपने छोटे छोटे दुकानदारों के हित के लिए अपने यहाँ वालमार्ट के कई स्टोर्स बंद करवा दिए .

# छोटे दुकानदारों को खतरा क्यों है ?
चूँकि वालमार्ट चीन से बहुत बड़े पैमाने पर चीजे बनवाती है और फिर उसे सीधे अपने स्टोर के द्वारा बेचती है …इसलिए ये पहले खूब सस्ते दरों पर सामान बेचकर वहा के सभी छोटे व्यापारियो और छोटे स्थानीय स्टोर को बर्बाद कर देती है ..फिर मनमाने ढंग से जनता को लूटना शुरू कर देती है .. यहाँ तक कि अमेरिका के सबसे बड़े दोस्त ब्रिटेन मे भी वालमार्ट को १००% की मंजूरी नहीं मिली है ..वहा भी वाल्मेर्ट को किसी भी ब्रिटिश कम्पनी को अपना पार्टनर बनाना पड़ता है ..

सरकार और कांग्रेस अचानक इसके पक्ष मे क्यों हैं ?

जब नरसिम्हा राव की सरकार मे मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे तब ये खुद रिटेल मे १०० एफडीआई के खिलाफ थे ..जब मनमोहन सिंह वित्त मंत्री रहते हुए आर्थिक सुधार किये थे तब अमेरिका ने इनके उपर बहुत दबाव डाला था .लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया था ..क्योंकि उस समय प्रधनामंत्री और कांग्रेस पार्टी गाँधी परिवार की काली छाया से दूर थी ..सोनिया गाँधी राजनीती मे ना आने का एलान कर चुकी थी और सीताराम केशरी कांग्रेस के अध्यक्ष थे ..और कांग्रेस का उस समय दूर दूर तक सोनिया गाँधी से कोई लेना देना नहीं था ..
फिर अचानक इस बदलाव के क्या मतलब है ?? और सबसे बड़ी बात कि खुद सोनिया ने सरकार को दो पत्र लिखे थे कि सरकार रिटेल मे १००% FDI की मंजूरी ना दे .. तो क्या अमेरिका मे सोनिया अपने दिमाग का ओपरेशन करवाने गयी थी जिससे उनकी पूरी सोच ही बदल गयी ?? आखिर ये सोनिया गाँधी अब खामोश क्यों है ? क्या मनमोहन सरकार मे इतनी हिम्मत है कि वो सोनिया गाँधी के २-२ पत्र लिखने के बाद भी मंजूरी दे सके ??
चिट्ठी के सवाल पर कल कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने कहा कि जब सोनिया गाँधी इस बारे मे चिन्तित थी तब इस देश मे कुछ और हालात थे ….अब कुछ और है | सवाल उठता है कि क्या सिर्फ एक साल के बाद ही देश के छोटे दुकानदारों को सोनिया गाँधी ने करोड़पति बना दिया ?


राजेश अग्रवाल 

No comments: