स्नान-विधि
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर शौच-स्नानादि से निवृत्त हो जाना चाहिए। निम्न प्रकार से विधिवत् स्नान करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
स्नान करते समय 12-15 लीटर पानी बाल्टी में लेकर पहले उसमें सिर डुबोना चाहिए, फिर पैर भिगोने
चाहिए। पहले पैर गीले नहीं करने चाहिए। इससे शरीर की गर्मी ऊपर की ओर बढ़ती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
अतः पहले बाल्टी में ठण्डा पानी भर लें। फिर मुँह में पानी भरकर सिर को बाल्टी में डालें और उसमें आँखें झपकायें। इससे आँखों की शक्ति बढ़ती है। शरीर को रगड़-रगड़ कर नहायें। बाद में गीले वस्त्र से शरीर को रगड़-रगड़ कर पौंछें जिससे रोमकूपों का सारा मैल बाहर निकल जाय और रोमकूप(त्वचा के छिद्र) खुल जायें। त्वचा के छिद्र बंद रहने से ही त्वचा की कई बीमारियाँ होती हैं। फिर सूखे अथवा थोड़े से गीले कपड़े से शरीर को पोंछकर सूखे साफ वस्त्र पहन लें। वस्त्र भले ही सादे हों किन्तु साफ हों। स्नान से पूर्व के कपड़े नहीं पहनें। हमेशा धुले हुए कपड़े ही पहनें। इससे मन भी प्रसन्न रहता है।
आयुर्वेद के तीन उपस्तम्भ हैं- आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य।
जीवन में सुख-शांति न समृद्धि प्राप्त करने के लिए स्वस्थ शरीर की नितांत आवश्यकता है क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन और विवेकवती कुशाग्र बुद्धि प्राप्त हो सकती है। मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए उचित निद्रा, श्रम, व्यायाम और संतुलित आहार अति आवश्यक है। पाँचों इन्द्रियों के विषयों के सेवन में की गयी गलतियों के कारण ही मनुष्य रोगी होता है। इसमें भोजन की गलतियों का सबसे अधिक महत्त्व है।
Rajesh Agrawal
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